येरुशलम की अल अक्सा मस्जिद और 1969 के गुजरात दंगे

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येरुशलम की जो अल अक्सा मस्जिद चर्चा में बनी हुई है उसका 1969 के गुजरात दंगों से क्या सम्बन्ध है? 21 अगस्त 1969 का दिन था, जब ऑस्ट्रेलिया के डेनिस माइकल रोहन नाम के एक ईसाई मिशनरी ने अल अक्सा मस्जिद में आग लगा दी थी। रोहन का मानना था कि अल-अक्सा मस्जिद को जलाने से Second Coming of Christ करीब आ जाएगी और टेम्पल माउंट पर यहूदी मंदिर के पुनर्निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो जाएगा। इसी घटना के जवाब में, सऊदी अरब के तत्कालीन सुल्तान शाह फैसल ने आनन फानन में एक महीने के भीतर विश्वभर के इस्लामिक देशों का एक सम्मेलन मोरक्को में बुलाया जिसमें 25 मुस्लिम देशों के अध्यक्ष शामिल हुए और यही सम्मेलन OIC इस्लामिक सहयोग संगठन बना। आश्चर्य है कि हिन्दुओं का एक आधिकारिक राष्ट्र नहीं है पर साम्प्रदायिक हैं और वे गैर लोकतान्त्रिक तानाशाह इस्लामी मुल्कों की उम्मा बनाकर भी शान्तिदूत हैं! मुस्लिम उम्मा ने इस अल अक्सा आग का खिलाफत आन्दोलन के बाद सबसे तगड़ा विरोध किया और विश्वभर में अल अक्सा काण्ड के खिलाफ हिंसक प्रदर्शन किए गये।भारत भी इस हिंसक प्रदर्शनों से अछूता नहीं रहा और देशभर में मुसलमानों ने प्रदर्शन किए जिसमें अन्य कौमों के विरुद्ध जहर उगला गया और कहा गया “जो हमसे टकराएगा मिट्टी में मिल जाएगा।” तुर्की के खलीफा के लिए भारत में दंगे करने वाली कौम अब इजरायल की घटना के लिए भारत जलाने को उतारू हो गयी। 29 अगस्त 1969 को कलकत्ता में 5 लाख शान्तिदूतों ने अशान्तिकारक रैली निकाली। घटना के दसवें दिन 31 अगस्त को अहमदाबाद में भी अल अक्सा काण्ड के नाम पर बहुत बड़ा उग्र जुलूस निकाला गया।

इस घटना की पृष्ठभूमि में ध्यान रखने वाली बात है कि ‘जमीयत उलेमा ए हिन्द’ कई महीने पहले से ही अहमदाबाद में कट्टरता का जहर घोलने का काम कर रही थी जिसकी आग में घी डालने का काम इस जुलूस ने किया। ध्यान दें तब संचार के आज जैसे साधन नहीं थे, तब यह मजहब रूपी राजनीतिक पार्टी छोटे से नोटिस पर विश्वभर में बड़ी बड़ी रैलियाँ प्रदर्शन झड़प कर रही थी। कानपुर से लेकर कलकत्ता तक की जमातों द्वारा संयुक्त राष्ट्र को पत्र लिखे गए थे।

शान्त रहने वाले गुजरात को आग में झोंका गया, फिर तो सिलसिला ही चल पड़ा, 4 सितम्बर को एक शान्तिदूत पुलिस वाले ने रामलीला में रामायण जमीन पर गिराकर लात मार दी। अल अक्सा काण्ड से निर्मित हुई सारी परिस्थिति पर परमपूजनीय श्रीगुरूजी स्वयं नजर रखकर हिन्दू समाज का मार्गदर्शन कर रहे थे। तब संघ की धर्म रक्षा समिति और भारतीय जनसंघ ने रामायण के अपमान का व्यापक विरोध किया और माफ़ी मांगने पर मजबूर किया।

परन्तु 18 सितम्बर को हिन्दुओं के मानबिंदु अहमदाबाद के 400 साल पुराने श्रीजगन्नाथ मन्दिर में शान्तिदूतों ने साधुओं से मारपीट करके मन्दिर में तोड़फोड़ की, दूसरे दिन भी हमला किया। अहमदाबाद में शान्तिदूतों ने सुनियोजित दंगा किया, तब हिन्दुओं के सब्र का बाँध भी टूट गया। दंगे में हज़ारों लोग मारे गए, हिन्दुओं के जान माल का बहुत नुकसान हुआ फिर भी अच्छा पाठ दंगाइयों को पढ़ा दिया गया। पर कांग्रेस की सरकार निरन्तर तुष्टिकरण की घिनौनी राजनीति करती रही और हिन्दुओं से सौतेला व्यवहार करती रही, संघ के अधिकारियों व हिन्दूओं पर झूठे आरोप मढ़कर गिरफ्तारी और दंगों की आड़ में संघ पर प्रतिबन्ध का षड्यंत्र रचा जिसे वकील साहब ने विफल कर दिया। कांग्रेस के उसी छद्म सेकुलरिज्म का प्रतिबिम्ब है विकीपीडिया का पेज जिसपर बड़ी धूर्तता से दंगे का पूरा जिम्मेदार हिन्दू समाज को ठहराया गया है और शान्तिदूतों का खरगोश के समान मासूम चित्रण किया गया है।

आज भी अल अक्सा मस्जिद इजरायल में जली है पर बनी है पृष्ठभूमि पुनः खिलाफत दोहराने की, म्यांमार के रोहिंग्या के लिए शहीद स्मारक तोड़ने वाली कौम, भारत में ‘भक्तों’ के लिए कोविड से मौत मांगने वाली कौम, तालिबान द्वारा 5 दर्जन बच्चों की हत्या पर चुप्पी तानने वाली कौम, विश्वभर के धार्मिक स्थल, संस्कृति और राष्ट्रों को रौंदने वाली कौम आज एक विदेशी ढाँचे और फिलिस्तीनी आतंकियों के लिए आँसू बहा रही है।

पर तुम्हारे इस मूल चरित्र और तुम्हारी रग रग से इस देश का प्रधानमंत्री वाकिफ़ है, इसलिए हिन्दू राष्ट्र तब तक सुरक्षित है जब तक प्रधानमंत्री मोदी इस देश की ढाल बने हुए हैं। और यह मैं इसलिए कहता हूँ क्योंकि अन्त में उपरोक्त लेख की सारी जानकारी का मूलस्रोत बता दूँ, वह है स्वयं प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी जी द्वारा लिखित पुस्तक सेतुबन्ध। इसी में पीएम मोदी ने अपनी प्रतिज्ञा भी लिखी है, “हिन्दूराष्ट्र के हम सभी अंग-प्रत्यंग हैं और इस राष्ट्र को परम वैभव प्राप्त कराने के लिए संगठित करने का वीरव्रत हमने लिया है। हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति और हिन्दू समाज की रक्षा कर।”

प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इजरायल पर क्या सोचते हैं?

उपरोक्त लेख आदरणीय लेखक की निजी अभिव्यक्ति है एवं लेख में दिए गए विचारों, तथ्यों एवं उनके स्त्रोत की प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु The Analyst उत्तरदायी नहीं है।

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