ब्राह्मण और क्षत्रिय के बीच का अन्योन्याश्रय संबध

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क्षत्रिय ब्राह्मण

सोशल मीडिया  पर एक गैंग तैयार हो गया है जो ब्राह्मण और राजपूतों के मध्य  मतभेद तैयार कर रहा है।आज कई ग्रंथो से खोज-खबर करने के बाद उनकों उत्तर देना चाहूँगा। ऐसे तो खोज-खबर करने के बाद 25-30 श्लोक और कई प्रसंग मिले जो ब्राह्मण और क्षत्रिय का अन्योन्याश्रय संबध बताते हैं। लेकिन लेख की सीमा देखते हुए दो चार ही प्रस्तुत कर पाऊंगा।

यजुर्वेद का एक मंत्र है,

“यत्रं ब्रह्मचक्षत्रं च सम्यंचौ चरतः सह। तं लोकं पुण्यं प्रज्ञेषं यत्र देवाः सहाग्निना।”
जिसका अर्थ है- जहाँ ब्रह्मतेज और क्षत्रबल एक साथ मिले हुए क्रियाशील हैं, जहाँ देव (ब्राह्मण) अग्नि (क्षत्रिय) के साथ है, मैं उस देश को पुण्य जानूं तथा वहीं रहूँ।

महाभारत के वनपर्व में भी अनेक श्लोक हैं–

“ब्रह्मक्षत्रेण संसृष्ट क्षत्रं च ब्रहम्णा सह। उदीर्णे दहतः शत्रून् वनानीवानिमारूत्तौ।”
अर्थ – ब्रह्मक्षत्र से तथा क्षत्र ब्रह्म से मिला हुआ हो तो प्रचण्ड ये दोनों सभी शत्रुओं को ऐसे जला डालते है जैसे अग्नि और वायु वनों का।

“ब्राह्मण्यनुपमा दृष्टिः क्षात्र मप्रतिबलम्। तौ यदा चरतः सार्ध तदा लोकः प्रसीदति।”
अर्थ – ब्राह्मण की ज्ञाण दृष्टि अनुपम है और क्षत्रिय का बल बेजोङ है। जब ये दोनों साथ रहते हैं तो संसार प्रसन्न रहता है।

“अग्रतः चतुरो वेदाः प्रष्ठतः सशरोधनु। इंदं ब्राह्मां इदं क्षात्रं  शास्त्रदपि स्वराष्ट्रधर्मपि।”
अर्थ – चारों वेदों की प्रमाणिकता और धनुष बाण के बल से धर्म की पुष्टि करो। ब्राह्मण शास्त्र के बल पर और क्षत्रिय शस्त्र बल से स्वधर्म और स्वदेश की रक्षा करे।

ब्राह्मणों ने क्षत्रियों को पुत्र से भी बढ़कर माना है

इस प्रसंग में रघुवंश और महाभारत से एक-एक प्रसंग रखना चाहूँगा। “एक ब्राह्मण के घर पर क्षत्रिय बालक नीति ज्ञान ले रहा था। उस ब्राह्मण देव के घर पङा अन्न तेज बारिश में बह जाता है। जिसके कारण उस ब्राह्मण का बच्चा और क्षत्रिय बालक भूख से व्याकुल हो उठते हैं। उन दोनों बालकों को भूखा देखकर ब्राह्मण भिक्षा मांगकर दो रोटी लाते हैं। तभी उनको याद आता है कि आज घर पर भोजन नहीं पका है, इसलिए गो-ग्रास भी नहीं दिया है। तो वे एक रोटी अपनी गैय्या को खिला देते हैं। बाकी एक रोटी अपनी पत्नी के हाथ पर रख देते हैं। दोनों पति-पत्नी विचार करते हैं दोनों बच्चों को ही खिला दिया जाए। पत्नी जब पहले अपने पुत्र को रोटी खिलाने लगती है तभी वह ब्राह्मण कहते हैं- “रुको देवी! यह अधर्म है इस पूरी रोटी पर अधिकार उस क्षत्रिय बालक का है, क्योंकि वह एक भविष्य का राजा है। वह भूख का शिकार हो जाएगा तो राज्य अनाथ रहेगा। राजसिंहासन सूना रहेगा। वही हमारा बालक शिकार होगा तो केवल यह हमारे लिए। यह कहकर उस रोटी को अपनी पत्नी से छीन लेते हैं और जाकर उस क्षत्रिय बालक को खिला देते हैं। आगे चलकर वह बालक राजा दिलीप बनते हैं और ब्राह्मण के उस परोपकारी रोटी का कमाल यह था कि राजा दिलीप इतने परोपकारी होते हैं कि एक गाय को बचाने के लिए अपना शरीर शेर को देने के लिए तैयार हो जाते हैं।

दूसरा प्रसंग महाभारत का है –“एक बार अश्वथामा अपने पिता गुरू द्रोणाचार्य के पास यह कहने लगता है कि पिता जी आप महर्षि परशुराम के बाद सबसे अच्छा धनुर्धारी हैं, यदि सर्वश्रेष्ठ धनुर्धारी आपको बनाना ही है तो अर्जुन के बजाय मुझे बनाइये तब द्रोणाचार्य बोलते हैं, “अश्वत्थामा तुम तो केवल मेरे पुत्र हो। लेकिन अर्जुन समूचे हस्तिनापुर का पुत्र है। तुम सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बन भी जाओगे तो क्या करोगे? किंतु अर्जुन बनेगा तो वह देश और धर्म की रक्षा करेगा।” यह था ब्राह्मण और क्षत्रिय के अन्योन्याश्रय सम्बन्ध का सर्वश्रेष्ठ रूप, यही रूप पूरे भारतीय इतिहास में हर जगह मिलता है।

जब कभी क्षत्रिय वंश के आस्तित्व खतरे में पङा तब ब्राह्मणों ने आगे आकर रक्षा की

(1) सूर्यवंश के राजा वेन जो निःसंतान ही परलोक सिधार गये तो ऋषियों ने उनके शरीर को मंथन कर मंत्रबल से पृथु को प्रकट किया जिन्होने पूरी पृथ्वी पर शासन किया था।

(2) ठीक इसी तरह सूर्यवंश के दूसरे धरा के निःसंतान राजा के शरीर को मथ कर ऋषियों ने मिथि को उत्पन्न किया गया जिन्होनें मिथिला राज्य की स्थापना की।

(3) राजा दशरथ को पुत्र नहीं हो रहा था तो ब्राह्मण जमाता मुनि की युक्ति से वंश की रक्षा हुई।

(4) चंद्र वंश क्षत्रियों की तो उत्पति ही एक ब्राह्मण तपस्वी से हुई है। महर्षि अत्रि के पुत्र हुए चंद्र और उनसे जो वंश चला वह चंद्रवंश के रूप में ख्यात हुआ।

(5) भीष्म के ब्रह्मचर्य रहने के प्रतिज्ञा के कारण जब भरत वंश के आस्तित्व पर संकट आया तो महर्षि वेदव्यास ने उस वंश की रक्षा की।

(6) सभी ब्राह्मण भी पितामह भीष्म को अपना पूर्वज मानकर उनका श्राद्ध अवश्य करते हैं क्योंकि पितामह भीष्म का श्राद्ध किये बिना किसी भी हिन्दू का श्राद्ध पूरा नहीं होता है।

राजपूत भी ब्राह्मणों को रक्षा करने के लिए खुद के जान दांव पर लगा देते थे

वे ब्राह्मणों के रक्षा के लिए प्राथमिकता देते थे। ग्रंथो में तो अनेक वृतांत है किंतु इस पर मध्यकालीन इतिहास से चर्चा करना चाहूंगा।

(1) एक बार महाराणा प्रताप और शक्ति सिंह लङ रहे थे तभी बीच-बचाव करने राजपुरोहित नारायणदास पालीवाल को शक्ति सिंह की तलवार लग गई इस घटना से महाराणा प्रताप इतने नाराज हो गये कि उन्होने तत्काल अपने भाई शक्ति सिंह को राज्य से निकाल दिया।

(2) राजा कान्हङदेव अपने पुत्र वीरमदेव की शादी खिलजी के बेटी फिरोजा से करने को इंकार कर दिया तो खिलजी ने 1310 बाङमेर पर आक्रमण कर भव्य महावीर मंदिर को तोङ दिया और भीनमाल से 45 हजार श्री माली वेदपाठी ब्राह्मणों को बंदी बना कर मेवाङ के खुडाला गांव में बंद कर दिया। तब उन ब्राह्मणों को छुङाने के लिए राजा कान्हङदेव चौहान ने आस-पास के सभी राजाओं को निमंत्रण भेजा जिसमें सोलंकी, गोहिल, राठौर ,परमार चंदेल और चावङा राजाओं ने राजा कान्हङदेव के साथ मिलकर खुडाला गांव में खिलजी के सेना पर आक्रमण कर 45 हजार ब्राह्मणों को छुङवाया। इस युद्ध में साल्हा सिंह ,शोभीत लाखन सिंह और अजय सिंह मोल्हावाल मारे गये थे।

(3) मेवाङ से हार के बाद लौटते समय महमूद ने 30 नवम्बर 1442 को कुंभलगढ के पास केलवाङा गांव के निकट बाणमाता मंदिर पर आक्रमण कर मंदिर तोङ डाला और मंदिर के पास रहने वाले 50 ब्राह्मण परिवारों के 140 लोगों को बंदी बना लिया। तब दो राजपूत सरदार भाला सिंह परिहार और वीर दीप सिंह ने घनघोर युद्ध कर ब्राह्मणों को तो छुङा लिया लेकिन इतने घायल हो गये थे कि वीरगति प्राप्त हो गये।

(4) 16 अगस्त 1679 को औरंगजेब के फौजदार तहवार खां ने जब पुष्कर तिर्थ पर आक्रमण कर दिया और वहां रहने वाले 80 ब्राह्मण परिवारों को बंदी बना लिया तो आलणियावास के राज सिंह राठौङ ,हरि सिंह राठौङ तथा केसरी सिंह राठौङ ने तीन दिनों तक घोर युद्ध कर पुष्कर तिर्थ की रक्षा की और 80 ब्राह्मण परिवारों को छुङवाया।

(5) 1679 में कारतलब खां और दराब खां ने खण्ठोले मंदिर पर जब आक्रमण कर मंदिर के 11 पूजारीयों को बंदी बनाकर खजाने के लिए पूछताछ करने लगा तो सुजान सिंह शेखावट, इंद्रभाण सुजान सिंह आदी ने अपना बलिदान देकर आक्रमण को निष्फल किया और ब्राह्मणों को छुङवाया।

अतः संक्षेप रूप से यह कहना चाहुंगा ब्राह्मण और क्षत्रिय के बीच अन्योनाश्रय संबध है। दोनों ने एक-दूसरे को मान-सम्मान दिया है जो क्षत्रिय इतिहास और राजाओं के वीरता पर अंगुली उठा रहा है उसका DNA कदापि ब्राह्मण का नहीं हो सकता और जो क्षत्रिय ब्राह्मणों का मान-सम्मान और निरादर कर रहा हो उसका DNA एक क्षत्रिय का नही हो सकता।

 – संजीत सिंह

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उपरोक्त लेख आदरणीय लेखक की निजी अभिव्यक्ति है एवं लेख में दिए गए विचारों, तथ्यों एवं उनके स्त्रोत की प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु The Analyst उत्तरदायी नहीं है।

2 COMMENTS

  1. Shriman Sanjit Singh.. अपने इतिहास को सही से नहीं समझा उत्तर वैदिक के बाद आर्यों के सामाजिक जीवन धार्मिक जीवन मैं बहुत बड़ा भूचाल आया ब्राह्मण और क्षत्रियों के बीच श्रेष्ठता के लिए काफी लंबे समय तक शीत युद्ध होते रहे अथर्ववेद में इसका प्रमाण है कि किस प्रकार वर्ण व्यवस्था के पश्चात धर्म में धार्मिक अनुष्ठान यज्ञ और कर्मकांड को लेकर ब्राह्मणों में कुछ अलगाववाद सा पनप गया वह अपने आप को क्षत्रियों से श्रेष्ठ समझने लगे और उनका अपमान करने लगे इसी कारण क्षत्रिय वर्ग रुष्ट हो गया और दोनों के बीच संघर्ष चला

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