युधिष्ठिर का द्यूत – वैदिक रहस्यमयी अक्षविद्या

158
युधिष्ठिर द्यूत जुआ अक्षविद्या

धर्मराज युधिष्ठिर को जुआरी कहना गलत है ।

धर्मराज युधिष्ठिर ने जीवन में कितनी बार द्यूत खेला?“व्यसनी” कहलाने के लिये कितनी बार खेलना पड़ता है?

द्यूतविद्या को जुआ कहना भी गलत है ।

धर्मराज युधिष्ठिर को ऋषि से द्यूतविद्या क्यों सीखनी पड़ी?ऋषि के सिवा अन्य कोई शिक्षक क्यों नहीं मिला?शकुनि के सिवा और कोई विशेषज्ञ नहीं था?

अक्षविद्या को जुआ बनाने की निन्दा ऋग्वेद में है । किन्तु इसे अक्षविद्या क्यों कहा गया?

क्ष त्र ज्ञ तो संयुक्ताक्षर हैं । तब “अ” से ”क्ष” तक अक्षमाला क्यों माना गया?

अक्षविद्या को द्यूतविद्या क्यों कहा गया?देवलिपि के अक्षरों का देवों से क्या सम्बन्ध है?द्यूत के धातु का देवों से क्या सम्बन्ध है?द्यूत का आमन्त्रण मिलने पर क्षत्रिय द्वारा ठुकराने की परम्परा थी?क्यों?

अक्षविद्या गोपनीय और विशाल विद्या थी । उसके अनेक अङ्ग थे । वैदिक तन्त्र के अनेक चक्र उससे निःसृत हुए,यथा सर्वतोभद्र,शतपद,आदि । हर अक्षर के अनेक प्रयोग और अर्थ थे ।

अक्षविद्या गोपनीय विद्या है और रहेगी । इसी की एक विकृति शतरञ्ज है । “शत” अभारतीय और उत्तरवर्ती काल का है । वेद में ६४ अक्षर हैं,शतरञ्ज में ६४ खाने हैं । युद्धकला द्यूत का अङ्ग है,बिना इसे सीखे कोई पूरा क्षत्रिय नहीं बन सकता ।

— आचार्य विनय झा

सम्राट युधिष्ठिर – सार्वभौम दिग्विजयी हिन्दूराष्ट्र निर्माता

उपरोक्त लेख आदरणीय लेखक की निजी अभिव्यक्ति है एवं लेख में दिए गए विचारों, तथ्यों एवं उनके स्त्रोत की प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु The Analyst उत्तरदायी नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here