आपने अक्सर देखा होगा फेमिनिस्ट हिन्दू धर्म की परम्पराओं और रीति रिवाज़ों का मज़ाक उड़ाती मिलती हैं। क्या सम्बन्ध है एंटी हिन्दू एजेंडे और फेमिनिस्ट में ? इतना तो अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि फेमिनिस्ट यानि महिलावादियों को फंडिंग विदेशों से आती है। इन विदेशी फंडिंग में सबसे ऊपर हांस ( HANS ) का नाम आता है। हांस भारत में सेण्टर फॉर सोशल रिसर्च ( CSR )नाम के संगठन को सपोर्ट करता है। CSR को रंजना कुमारी चलाती हैं। मेरी रंजना जी से दो बार मुलाकात हुई है बल्कि गर्मागर्म बहस हुई है। उन्होंने बोला था हिन्दू कोई धर्म नहीं है आप लोग नाहक ही परेशान हैं। वामपंथियों का भी यही मानना है इसलिए वामपंथियों और फेमिनिस्ट में इतनी समानता नज़र आती है।
हान्स के बारे में विस्तार से पढ़ें ऊपर से देखने में यह सामाजिक संगठन लगेगा पर असल में इसका मुख्य कार्य दुनिया में ईसाईयत फैलाना है। तो जब फण्ड देने वाला ईसाई बनाने पर तुला हो ,तो हिन्दू कोई धर्म रह ही नहीं जाता इनके लिए। मैंने एक फेमिनिस्ट संगठन का उदाहरण दिया ऐसे कई हैं जो विदेशों में भारतीय महिलाओं की रोती छवि दिखाकर पैसा बटोर रहे हैं। फेमिनिस्ट
इसके अलावा और एक एजेंडा है। भारत की शक्ति है परिवार हमारे यहाँ आज भी पीढ़ियां साथ रहती हैं। इस परिवार को तोड़ने से बाज़ारवाद बढ़ता है , कैसे ? एक केस हुआ तो लड़का परिवार से अलग हुआ ताकि परिवार पर कोई आंच ना आये। अब उस एक परिवार के दो टुकड़े हो गए , दो मकान होंगे दो बेड होंगे दो टीवी होंगे , बाजार बढ़ेगा। क्यों लगता है आपको कि फेमिनिस्ट नित नए कानून लाने की वकालत करती है क्योंकि व्यापार चलता रहेगा , पैसा आता रहेगा। इसके लिए वो हर तरह का ज़हर घोलेंगी बदन ढकी हुई महिला को बहनजी कहा जयेगा ताकी वो नंगी घूमे और कहे कि ,”नज़र तेरी ख़राब है बदन मैं ढकूँ ” ! हमारी लड़कियों को फ़र्ज़ी अत्याचार की कहानियां सुनाई जाएँगी। मज़े की बात तो यह है कि जो हमारे यहाँ अत्याचार बताया जाता है वही इस्लामिक देशों में सशक्तिकरण बताया जाता है। जैसे उनका हिजाब उनकी परंपरा है तो हमारा करवाचौथ पितृसत्ता का प्रतीक। बड़ा झोल झाल है बात इतनी साधारण नहीं है जितनी दिखती है।
– ज्योति तिवारी, पुरुष अधिकार कार्यकर्ता, लेखिका व सामाजिक सरोकार से जुड़े कार्य करती हैं. उनकी किताब ‘अनुराग‘ बेस्ट सेलर पुस्तक रही है.
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