कुछ लोगों द्वारा यह कहा जाता है कि स्त्री कितनी भी दुष्ट हो उसका सम्मान करना ही चाहिए फिर चाहे वह वैश्या ही हो। इसके लिए वे हिन्दू ग्रन्थों से कुछ तर्क भी देते हैं। एक तर्क है कि हनुमान जी ने सुरसा और त्रिजटा जो कि राक्षसियाँ थीं उन्हें माता कहकर सम्मान दिया था फिर बॉलीवुड अभिनेत्री का अपमान क्यों, नाक कान काटने की धमकी क्यों, माना वह दसियों के साथ सोती है फिर भी उसे वैश्या क्यों कहना। इसका उत्तर जानने के लिए हमें वाल्मीकि रामायण में जाना होगा।
वाल्मीकि रामायण सुंदरकांड प्रथम सर्ग में समुद्र लंघन के समय हनुमान जी के सुरसा से सामना होने की कथा है। वाल्मीकि रामायण के अनुसार सुरसा एक देवी ही थी। ऋषियों और देवताओं ने मैनाक पर्वत विजय के बाद पुनः हनुमानजी जी के बल की परीक्षा लेनी चाही और नागमाता सुरसा को राक्षसी का भेष धरकर विघ्न डालने भेजा। हनुमानजी ने पहले तो सुरसा को आदर से समझाया। पर जब वह नहीं मानी तो वे कुपित हो गए और अपना बल दिखाया (श्लोक 151..)। फिर सुरसा को जीतकर उनके असली स्वरूप को प्रणाम किया। परन्तु इस घटना में कहीं भी उन्होंने माता सम्बोधित नहीं किया। अतः यह सुरसा को माता कहने का तर्क खण्डित हो गया, क्योंकि सुरसा न तो कोई नीच दुष्टा स्त्री थी न ही हनुमानजी ने स्त्री समझकर उसे व्यर्थ सम्मान देकर फेमिनिज़्म फैलाया। आगे सिंहिका वध में भी हनुमानजी ने स्त्री विस्त्री कुछ नहीं देखा बस दुष्ट समझकर वध कर डाला।
इसके आगे लंकिनी राक्षसी ने जब हनुमान जी से गलत तरीके से बात की तो हनुमानजी ने भी उसे उसी भाषा में उत्तर दिया। इसके बाद लंकिनी ने हनुमानजी को बड़ी जोर से थप्पड़ मारा, तो हनुमानजी ने भी जोर से मुक्का जड़ दिया। इससे लंकिनी गिर गयी और हार मान ली। स्त्री समझकर हनुमान जी ने पहले ही उसको ज्यादा तेज नहीं मारा था, पर हनुमान जी को उसपर दया आ गई।(सुंदरकांड, सर्ग 3)। शठे शाठयम समाचरेत और सभी पर दयाभाव सनातनियों की नीति है। फेमिनिज़्म हम लोगों की नीति कभी नहीं रही।
इसके आगे लंका दहन में हनुमान जी ने स्त्री पुरुष का भेद न करते हुए लंका दहन किया था। सुंदरकांड 54 सर्ग श्लोक 25-26 में आता है कि,
“लंका धू धू करके जलने लगी। कितनी ही स्त्रियाँ गोदमें बच्चे लिए सहसा क्रंदन करती हुई नीचे गिर पड़ीं। राक्षसियों के सारे अंग आग की चपेट में आ गए, वे बाल बिखरे अट्टालिकाओं से नीचे गिर पड़ीं मानो मेघ से जलती हुई बिजली गिरती हों।”
यहाँ भी हनुमान जी ने दुष्ट औरतों के फेमिनिस्ट भक्तों की तरह रोना नहीं फैलाया, शत्रु को मारा बस फिर चाहे स्त्री हो या पुरुष।

अब आगे त्रिजटा की बात, तो त्रिजटा विभीषण की पुत्री और बड़ी हरिभक्त थी। हनुमान जी का उनसे कोई वार्तालाप रामायण में नहीं मिलता। परन्तु त्रिजटा परम आदरणीया हैं और माता सीता की परम भक्त व शुभचिंतक होने के कारण माता कहलाने के सर्वथा योग्य हैं। इसलिए त्रिजटा माता को हम सब नमन करते हैं। वे ही तो हमारी जानकी मैया का एकमात्र सहारा थीं उस राक्षस की लंका में।
राक्षसियों के प्रति हनुमान जी के कठोर विचार
परन्तु उनके साथ जो अन्य राक्षसियाँ थीं वे एक नम्बर की नीच दुष्टा थीं। सुंदरकांड में वर्णन है कि वे राक्षसियाँ सीताजी के अलग अलग अंगों को कच्चा खाना चाहती थीं और सीता मैया पर बड़ा अत्याचार करती थीं। उन दुष्टाओं पर हनुमानजी का भारी क्रोध युद्धकाण्ड में प्रकट हुआ है। युद्धकाण्ड 113 सर्ग में हनुमानजी सीताजी को श्रीराम विजय का सन्देश सुनाने के बाद कहते हैं,
“आप जैसी पतिव्रता देवी अशोक वाटिका में बैठकर क्लेश भोग रही थीं और यह भयंकर रूप एवं आचार वाली विकराल मुखी क्रूर राक्षसियाँ आपको बारंबार कठोर वचनों द्वारा डांटती फटकारती रहती थीं। रावण की आज्ञा से यह क्या क्या आपसे कहती थीं मैंने सब सुना है। ये सबकी सब अत्यंत क्रूर और दारुण हैं। मैं तरह तरह के आघातों द्वारा इन सब का वध कर डालना चाहता हूं। मेरी इच्छा है कि मुक्कों, लातों, थप्पड़ों, पिंडलियों और घुटनों की मार से इन्हें घायल करके इनके दांत तोड़ दूं, इनकी नाक और कान काट लूं, तथा इनके सिर के बाल नोच लूं। यशस्विनी! इस तरह बहुत से प्रहारों द्वारा इनको पीट कर क्रूरतापूर्ण बातें करने वाली इन सब अप्रियकारिणी राक्षसियों पटक-पटक कर मार डालूं। जिन जिन भयानक राक्षसियों ने आप को डांट लगाई है उन सबको मैं अभी मौत के घाट उतार दूंगा इसके लिए आप मुझे आज्ञा दें।”
परन्तु परम वात्सल्यमयी जनककिशोरी सीता जी ने हनुमान जी को समझा बुझाकर शांत किया कि इन्हें छोड़ दो, तब कहीं जाकर हनुमानजी माने। दुष्ट स्त्रियों के यही हनुमानजी हिन्दू धर्म की आदर्श स्त्री सीता माता के परमभक्त थे।

अब हम शूर्पनखा के नाक कान काटने के प्रसङ्ग में श्रीरामचन्द्र का वह आदेश देखते हैं जिसके आधार पर लक्ष्मण जी ने शूर्पनखा को कुरूप किया था। जाहिर है कि शूर्पनखा एक वैश्या थी जो श्रीराम और लक्ष्मण पर डोरे डाल रही थी। वह काम में हद से ज्यादा उन्मत्त थी और सीताजी की हत्या को उतावली थी। ऐसी नीच दुष्ट वैश्या के प्रति श्रीरामचन्द्र ने कहा –
“लक्ष्मण! तुम्हें इस कुरूप, कुल्टा, अत्यंत मतवाली और लंबे पेट वाली राक्षसी को किसी अंग से हीन करके कुरूप बना देना चाहिए।”
यह सुनकर लक्ष्मण जी ने तुरन्त शूर्पणखा के नाक कान काट लिए।
पाठक स्वयं निर्णय करें कि हनुमानजी किसके पक्ष में हैं? दुष्टा स्त्रियों का सम्मान जब श्रीहनुमान जी महाराज ने नहीं किया तो फिर दुष्ट स्त्रियों का झूठा सम्मान क्यों? क्या फेमिनिस्ट हिंदूवादियों में हनुमानजी से ज्यादा बुद्धि है। दुष्ट अभिनेत्रियों के अश्लीलता पूर्ण क्रियाकलाप, अनेक आदमियों से सम्बन्ध, आदि सब नेट पर हैं। ऐसे में उन्हें वैश्या कहने में क्या गलत है? वे पैसे के लिए ही तो अपने अंग प्रदर्शन और शीलभंग करती हैं। जबकि हनुमान जी ने भी दुष्टा स्त्रियों की लात घूंसों से मारने, नाक कान काटने व जान से मारने तक की बात भगवती सीता के समक्ष कही है। स्त्री चाहे कैसी भी दुष्ट हो, बुरे से बुरे कर्म करे पर उसका सम्मान हो यह सनातन धर्म का सिद्धांत नहीं है। हिन्दू धर्म का एक ही सिद्धान्त है, अच्छे कर्म करने वाले गुणवान स्त्री पुरुष दोनों पूजनीय व सम्मान के पात्र हैं और नीचकर्म करने वाले दुष्ट स्त्री पुरुष दोनों धिक्कार, असम्मान और दुत्कार के पात्र हैं। इसमें कोई डिस्काउंट नहीं है। सिद्ध होता है कि दुष्टाओं के लिए सम्मान मांगने वाले श्री हनुमान जी के विरोधी हैं।
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