आजकल प्रायः ऐसे समाचार आते रहते हैं कि मेवात के मुसलमान बहुल क्षेत्रों में हिंदुओं पर अत्याचार, हिंदुओं का पलायन।हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में विस्तृत यह प्रदेश जो कभी 100% हिन्दू था इस परिस्थिति में कैसे पहुँच गया कि वहाँ हिंदुओं की संख्या इतनी अल्प और शक्ति इतनी क्षीण हो गयी, यह जानने के लिए आपको इतिहास के उस काल का अध्ययन करना होगा जब दिल्ली को केंद्र बनाकर उत्तर भारत में इस्लामिक शासन की स्थापना हो रही थी। तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान पराजित हुये और दिल्ली पर मुहम्मद गोरी के द्वारा इस्लामिक शासन की स्थापना हुई। गोरी ने अपने भारतीय राज्य को अपने गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक को दिया और कुतुबुद्दीन के अयोग्य पुत्र आरामशाह के बाद वह राज्य उसके गुलाम इल्तुतमिश को प्राप्त हुआ। इल्तुतमिश से रज़िया और रज़िया से मुईजुद्दीन बरामशाह, अलाउद्दीन मसूदशाह के हाथों से होते हुये गायसुद्दीन बलबन के नियंत्रण में पहुंचा।
बारह वर्ष से अधिक आयु के सभी पुरुषों की ह्त्या का आदेश दे दिया गया। इस नर संहार में 1 लाख से अधिक व्यक्ति मारे गए और हजारों स्त्रियॉं दासी बना कर बेंच दी गईं।
इस दौरान वर्तमान राजस्थान, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा के अनेक छोटे बड़े हिन्दू राज्य इस नयी स्थापित म्लेच्छ सत्ता से अपनी स्वतन्त्रता के लिए लड़ते रहे। उपरोक्त शासकों का अधिकांश समय इन्हीं युद्धों और विद्रोहों में ही बीतता रहा। मेवात क्षेत्र हिन्दू भी स्वभावतः स्वतन्त्रताप्रिय थे और उन्हे इस्लामिक दासता पसंद नहीं थी। वे वीर प्रवृत्ति के लोग थे किन्तु उनका एक केंद्रीकृत राज्य नहीं था जिससे वे दिल्ली की इस अत्याचारी सत्ता से संघर्ष कर सकते। अतः उन्होने छापामारी की रणनीति अपनायी। मेवातियों ने तुर्कों के राज्य में छापे मारने आरंभ कर दिये। उनके आक्रमणों से सल्तनत की राजधानी में हाहाकार मच गया था।
मेवातियों के विषय में तत्कालीन दरबारी इतिहासकार जियाउद्दीन बर्नी लिखता है, ” ये बहुधा रात्रि में आक्रमण करते थे और निवास को तहस नहस कर देते थे। लोगों को उनके भय से नींद नहीं आती थी। दिल्ली की आसपास की बस्तियों को मेवातियों ने तहस नहस कर डाला था। ये लोग विषेशरूप से मुसलमानों को लक्ष्य करते थे।” अतः गायसुद्दीन बलबन के समय मेवाती हिंदुओं की छापामार लड़ाई एक बड़ी समस्या बन चुकी थी।
बलबन एक कट्टर सुन्नी मुसलमान था। काफिर हिन्दू उसके लिए दास होने और दासता नहीं मानने पर ह्त्या के ही योग्य था। और यहाँ तो क्रूरता को प्रकट करने का एक राजनीतिक कारण भी था। मेवात में विद्रोह के दमन को बलबन ने अपनी पहली प्राथमिकता बनाया। उसने भारी सेना लेकर इस क्षेत्र में पड़ाव डाला। वनों को साफ कर दिया गया। बारह वर्ष से अधिक आयु के सभी पुरुषों की ह्त्या का आदेश दे दिया गया। इस नर संहार में 1 लाख से अधिक व्यक्ति मारे गए और हजारों स्त्रियॉं दासी बना कर बेंच दी गईं। इस क्षेत्र में नए दुर्ग और छावनियों का निर्माण किया गया। और इस भीषण घटना का परिणाम इस क्षेत्र में हिंदुओं के धर्मांतरण और मुसलमान संख्या की सतत वृद्धि के रूप में हुआ जो अभी भी जारी है।
कैसे बचाया था गोस्वामी तुलसीदास जी ने हिन्दूओं को मुसलमान बनने से?
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