ब्रिटिश अमेरिकन इतिहासकार एवं कवि Robert Conquest (15 जुलाई 1917- 3 अगस्त 2015) ने 1968 में सोवियत यूनियन में स्टालिन द्वारा किये गये लगभग डेढ़ से दो करोड़ हत्याओं पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक ‘The Great Terror: A reassessment“ लिखा है। यह पुस्तक 1968 में प्रकाशित हुई थी , जिसका पुनः प्रकाशन मामूली संशोधनों के साथ 1990 में हुआ। पुस्तक के चालीसवीं वर्षगांठ पर नये प्रस्तावना के साथ 2008 मे छापा गया। वास्तव में यह पुस्तक conquest की यूक्रेन के कृषि सामूहीकरण पर छपी पुस्तक Harvest of Sorrow के Sequel के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। प्रस्तुत पुस्तक में स्टालिन द्वारा अपने विरोधियों को समाप्त करने के लिए पिछले शताब्दी के चौथे दशक से प्रारम्भ किये गये हत्या अभियान का सजीव चित्रण है। हिटलर और होलोकास्ट पर सैकड़ो पुस्तकें तथा पिक्चर उपलब्ध है, लेकिन स्टालिन के कृत्यों पर संभवतः विस्तार से विवरण सर्वप्रथम इसी पुस्तक में प्राप्त होता है।
यद्यपि पुस्तक के पूर्व फिक्शन रूप में जार्ज ऑरवेल की ‘Animal Farm’, ‘1984’ तथा आर्थर कोएस्ट्रलर की ‘Darkness at Noon’ उपलब्ध है। परन्तु इनके बारे में conquest का कहना है कि पात्रो को पीड़ित रूप में दिखाया गया है, खासकर ‘Darkness at Noon’ में वे ट्राटस्की, बुख़ारिन आदि हो सकते है, मात्र अर्धसत्य है। वास्तव में इन लोगो की Purging शुरू करने के पहले Sabotage, Enemy of the people, Foreign agent आदि का झूठा आरोप लगाकर 1930 में इंडस्ट्रियल पार्टी, 1931 में मेनशेविकों पर तथा 1933 में मेट्रो इंजीनियर पर मुकदमा चलाकर मृत्युदंड दिया गया था। जब ये फर्जी मुकदमे चलाये जा रहे थे तो ट्राटस्की, बुख़ारिन, जिनोबीब, कमेनेव आदि की तरफ से एक शब्द भी विरोध में नही कहा गया था। बल्कि ये लोग स्टालिन द्वारा चलाये जा रहे इन फर्जी मुकदमों का समर्थन कर रहे थे।
1984 और एनिमल फार्म, लेनिनवादी मूक बधिर समाज का नमूना
Conquest पश्चिम के तमाम बुद्धिजीवियों की तीखी आलोचना की है,जो अंत तक स्टालिन के भ्रम में उलझे रहे और आतंक की भयावहता को नही समझ सके। इनमें उन्होंने वीट्रिस, सिडनी वेब, जी. वी. शा, ज्या पाल सार्त्र, वाल्टर ड्यूरेंटी, सर बनार्ड पेरिस, हराल्ड लास्की, डी. एन. प्रिट , थ्योडर ड्रेजियर, ब्रेख्त , ओवन लैटिमोरे, रोम्या रोला तथा अमेरिकी राजदूत जोसेफ डेविड का उल्लेख किया है। टिमोथी गार्टन ऐश ने Robert Conquest को सोल्झनितसिन के पहले का सोल्झनितसिन कहा है।
पुस्तक को तीन हिस्सों में बांटा गया है।
1- Purge Begins
2- Yezhov years तथा
3- Aftermonth.
26 मई 1922 को लेनिन को पहला ब्रेन स्ट्रोक हुआ जिसके कारण राजनीति में लेनिन की सक्रियता कम हो गई। दसवीं पार्टी कांग्रेस जो मार्च 1921 में हुआ था, उसमें लेनिन ने कहा था कि इतिहास में अधिकांश महत्वपूर्ण और लोकप्रिय आंदोलनों में गंदगी, दुस्साहस , शेखी बघारना तथा अनावश्यक शोर शराबे का तत्व निश्चित रूप से विद्यमान रहता है। इस कांग्रेस के कुछ ही महीनों बाद लेनिन ने पार्टी में विद्यमान लापरवाही तथा परजीवी तत्व की तीखी आलोचना की और कम्युनिस्टों के शेखी बघारने तथा झूठ के तथ्य को अपने विशिष्ट अंदाज में com-munist की तर्ज़ पर com-boasts तथा com-lies कहा। इसी बीच स्टालिन ने लेनिन की पत्नी क्रुप्सकाया से अत्यंत आशालीन तथा अभद्र भाषा में बात किया। स्टालिन ने क्रुप्सकाया को अत्यंत गंदी गाली (syphlic whore) कहा, जिसका हिंदी अनुवाद करना मुझे उचित नहीं प्रतीत हो रहा है। समूहिक खेती हेतु किसानों द्वारा तीव्र विरोध के फलस्वरूप लेनिन द्वारा नई आर्थिक नीति की घोषणा की गई, जिसके फलस्वरूप माडरेट विचारधारा वालों को बल मिला। स्टालिन की सख्त एवं रूखे दृष्टिकोण के कारण लेनिन द्वारा स्टालिन को अपने टेस्टामेंट में जर्नल सेक्रेटरी के पद से हटाने का भी प्रस्ताव किया, जिस पर सेंट्रल कमेटी द्वारा विचार किया जाना था। आने वाले समय में पोलितब्यूरो के सात सदस्यों – स्टालिन, ट्राटस्की, जिनोबीब, कामेनेव, बुख़ारिन, राइकोव तथा टामस्की के बीच सत्ता हेतु संघर्ष होना था और अंत मे स्टालिन ही इकलौते शेष बचे। अन्य को मृत्युदंड दिया गया।
स्टालिन के अलावा जिनोवीव ही ऐसे बोल्शेविक नेता थे, जिन्हें बुद्धिजीवी नही माना जाता था। लेनिन ने जिनोवीव के बारे में कहा था कि वह मेरी गलतियों की नकल करता है। आगे यह भी कहा था कि जिनोवीव की बहादुरी तब दिखाई पड़ती है जब खतरा टल चुका होता है। कामेनेव के बारे में कहा जाता है कि वह बिल्कुल ही महत्वाकांक्षी नहीं है और माडरेट ही कहे जा सकते हैं। ट्राटस्की के बारे में Milovan Djilas ने बताया कि वह एक प्रखर वक्ता, सुसंस्कृत, तीक्ष्ण बुद्धि के व्यक्ति है, लेकिन उन्हें यथार्थ का कोई ज्ञान नहीं है।
स्टालिन खेमे के महत्वपूर्ण व्यक्ति Moltov, Ordzhonikidze, Yogoda, Lazar Kaganovich, Andre Zhadanov, L. Beria तथा Yezhov माने जाते हैं। मोलतोव को छोड़कर ये सभी फैनेटिक किस्म के लोग थे, जिन्हें स्टालिन पसंद करते थे। यगोडा ने एक संस्मरण का यह भी जिक्र किया है कि चौथे दशक के पूर्वार्द्ध में स्टालिन ने उनसे कहा था कि वह लोगों का समर्थन भय आधारित चाहेंगे न कि वैचारिक प्रतिबद्धता के आधार पर, क्योंकि वैचारिक प्रतिबद्धता के शिथिल होने का डर है, जबकि भय आधारित समर्थन स्थायी होता है।
Collectivization हेतु पोलितब्यूरो में दक्षिणपंथी ग्रुप बाधा उत्पन्न कर रहा था। इस ग्रुप के मुख्य नेता बुख़ारिन थे, लेकिन स्टालिन द्वारा ट्राटस्की, जिनोवीव आदि का समर्थन प्राप्त कर दक्षिण पंथी ग्रुप को समाप्त किया और सख्ती से इसे लागू किया गया। केवल उक्रेन में ही इस गृह युद्ध मे 50 लाख लोग मारे गए थे। सख्ती का यह आलम था कि 27 दिसंबर 1932 को देश के अंदर ही एक जगह से दूसरे जगह जाने के लिए आंतरिक पासपोर्ट की व्यवस्था की गई। Collectivization लागू करना निहायत ही नृशंस अत्याचारों की दास्तान है, जिसे इसी लेखक ने अपने पुस्तक Harvest of Sorrow में वर्णित किया है। सोवियत यूनियन में ‘कुलक’ शब्द उतना ही घृणित माना गया, जितना नाज़ी जर्मनी में ‘यहूदी’ था। प्रस्तुत पुस्तक में Collectivization के बाद का विवरण है।

स्टालिन के collectivization Policy का काफी विरोध हुआ। 23 सितंबर 1932 को रायटिंन को दुबारा पार्टी से निकाला गया तथा गिरफ्तार कर लिया गया। स्टालिन ने OGPU (वर्तमान का KGB) की मदद से बिना राजनीतिक हस्तक्षेप के हत्या करना चाहा, परन्तु मामले को पोलितब्यूरो को संदर्भित कर दिया गया। मृत्युदंड के मामले में किरोव, क्यूवीसेव, कोसीर, कालीनिन, रुडजुटक तथा Ordzhonikidze द्वारा स्टालिन का विरोध किया गया। स्टालिन के समर्थन में सिर्फ कागानोविच ही खड़े रहे, जबकि मोलतोव तथा अंद्रेयेव भी खुले आम रायटिन को शूट करने का समर्थन नही कर सके। पहली बार स्टालिन को अपने घोषित समर्थकों का स्पष्ट समर्थन नही मिल पाया। तब स्टालिन ने यह महसूस किया की सिर्फ राजनीतिक मत में विरोध के आधार पर अपने विरोधियों की हत्या सम्भव नही है, अतः वास्तविक हत्या का आरोप लगाकर विरोधियों को फायरिंग स्क्वाड के सामने भेजकर मारा जा सकता है। इसी के क्रम में 1 दिसंबर 1934 को किरोव की हत्या हुई। किरोव की हत्या पर Robert Conquest ने एक अलग किताब लिखा है जिसमे विस्तार से विवरण उपलब्ध है। 1963 में स्टालिन की पुत्री स्वेतलाना ने यह कहा था कि उनके पिता स्टालिन ही किरोव की हत्या के लिए जिम्मेदार थे। ख्रुश्चेव के संस्मरण जो 1989 में प्रकाशित हुए थे, में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि यगोडा ने स्टालिन के आदेश पर ही किरोव की हत्या करवाई थी। किरोव कि हत्या ही वह महत्वपूर्ण घटना है, जिसके बाद स्टालिन एक नृशंस तानाशाह में परिवर्तित होते गये, और आतंक की वह मशीन तैयार की जिसने उसके समस्त विरोधियों को फर्जी आरोपों में फायरिंग स्क्वाड तक पहुँचाया।
विरोधियों पर आरोप लगाने में मुख्यतया जो तर्क दिए जाते थे, उसमें मुख्य रूप से दो फ्रेज़ का इस्तेमाल होता था- पहला “जैसा कि सबको ज्ञात है” (As is well known) तथा दूसरा “यह आकस्मिक नही है”। इन दोनों वाक्यांशों के आधार पर सामान्यतया यह कहा जाता कि जैसाकि सबको ज्ञात है कि ट्राटसकाइट नाज़ी एजेंट है तथा किसी घटना का सम्बंध यह कह कर जोड़ दिया जाता कि यह आकस्मिक नही है कि अमुक ने अमुक कार्य क्यों किया।
Yenukidze, स्टालिन के आतंक के पहले शिकार बने। इसके बाद 26 जनवरी 1935 को क्यूबीसेव को मारा गया। यह आतंक की मशीन जैसे-जैसे लोगो का शिकार करती रही, तो कुछ विरोधी स्वर भी उभरे। इसमें प्रमुख नाम लेनिन की विधवा क्रुप्सकाया का भी था, जिन्हें स्टालिन ने यह कहकर धमकाया की वे शांत रहें, नहीं तो उनकी जगह पर ऐलना स्टासोवा को लेनिन की विधवा घोषित करवा दिया जायेगा, क्योंकि पार्टी सर्वशक्तिमान है और कुछ भी कर सकती है। दूसरा विरोधी स्वर मक्सिम गोर्की का था जो रहस्यमय परिस्थितियों में 31 मई 1935 को बीमार होकर 18 जून 1935 को मर गये। इस समय आतंक की मशीन OGPU का पुनर्गठन करके NKVD नाम दे दिया गया था और इसके मुखिया यगोडा थे।
तीन महत्त्वपूर्ण ट्रायल हुए। पहला ट्रायल 19 अगस्त 1936 से 28 अगस्त 1936 में हुआ। दूसरा ट्रायल 23 से 30 जनवरी 1937 में तथा तीसरा ट्रायल मार्च 1938 में हुआ। पहले ट्रायल में 16 लोगों को दोषी मानकर फाँसी दी गई, जिसमे दो महत्वपूर्ण नाम जिनोवीव तथा कमेनेव का है। दूसरे ट्रायल में 17 लोगों को दोषी सिद्ध कर गोली मारी गयी,तथा तीसरे ट्रायल में 21 लोगों को दोषी माना और फलस्वरूप गोली मारा गया।इसमे तीन महत्व पूर्ण नाम बुखारिन, राइकोव तथा यगोडा शामिल हैं। पहले ट्रायल के समय NKVD के चीफ यगोडा रहे। दूसरे और तीसरे ट्रायल के समय yezhov थे। मजे की बात यह है कि यगोडा को भी तीसरे ट्रायल में दोषी पाया गया और उन्हें 15 मार्च 38 को गोली मारी गयी। एझोव का भी ट्रायल होने के बाद 4 फरवरी 1940 को गोली मारी गयी। एझोव को सोबियत यूनियन का सबसे घृणित व्यक्ति माना जाता है। एझोव का कद 5 फिट का था, अतः इसे घृणित बौना भी कहा जाता है। Yezhov के बाद NKVD के चीफ वेरिया को भी ख्रुश्चेव काल मे 23 दिसंबर 1953 को गोली मारी गयी।
इन सभी ट्रायल में कथित अपराधियों पर दोष सिद्ध करने के लिए कथित अपराधियों से कंफेशन प्राप्त करना होता था। कन्फेशन प्राप्त करने के लिए Interrogator नियुक्त किये जाते थे। अपराध मुख्य रूप से विदेशी शक्तियों का एजेंट होना, ख़ास कर नाजी एजेंट होना, ट्राटसकाइट होना, अमुक के हत्या में षडयंत्र करना ,जनता के दुश्मन का साथ देना, सैवोटाज करना, किरोव के हत्या/ गोर्की की हत्या (कथित) में षडयंत्र कारी की भूमिका निभाना , कुलक का साथ देना आदि अस्पष्ट से अभियोग लगाए जाते थे। कथित अपराधी को कहा जाता था कि इस अपराध को वह स्वयं कुबूल कर ले। एक पोलिस कम्युनिस्ट ने स्वयं के अनुभव का उल्लेख किया है की कथित अपराधी दो से तीन हफ्ते में 50 से 60 विभिन्न Interrogation में व्यक्ति अर्ध बेहोशी की स्थिति में आ जाता है, क्योंकि Interrogation के साथ-साथ अत्यंत ठंडे जगह में रखा जाता,अल्प भोजन के साथ सोने की पूरी मनाही होती थी। ऐसी स्थिति में आदमी एक मशीन की तरह हो जाता, आंखे फैल जाती,पैर सूज जाता तथा हाथ कांपने लगते। उसके सोचने समझने की शक्ति लगभग समाप्त हो जाती। कन्फेशन प्राप्त कर दोष सिद्घ करने के सबसे बड़े सिद्धान्त कार dzerzhinsky तथा वाइसिन्सकी थे। एक Interrogator जकोवस्की ने डींग मारते हुए यहाँ तक कहा था कि यदि उसे कार्ल मार्क्स का भी Interrogation करना हो तो बहुत शीघ्र ही कार्ल मार्क्स से यह कन्फेशन प्राप्त कर लेंगे की वे विस्मार्क के एजेंट थे।
अभी जल्दी ही मैंने Nien Cheng की पुस्तक “Life and Death in Shanghai” जो 1986 में प्रकाशित हुई थी, को पढ़ा है जिसमे माओ के चीन में सांस्कृतिक क्रांति में उस महिला के स्वयं का Interrogation का दिल दहलाने वाला सजीव चित्रण है।
ये ट्रायल के महत्वपूर्ण व्यक्तियों के कारण काफी चर्चित माने जाते हैं। उक्त के अतिरिक्त सभी पदाधिकारियों को विभिन्न अपराधों में निर्दोष व्यक्तियों को फर्जी अपराधों में अरेस्ट करने के मासिक लक्ष्य निर्धारित किया था। यह भी उल्लिखित है कि वे लक्ष्य प्राप्त करने में यदि असफल रहे तो स्वयं को भी अपराधी की श्रेणी में शामिल कर लेना होता था। इस आतंक की मशीन ने 2 करोड़ से अधिक व्यक्तियों की स्टालिन के शासन काल मे हत्या की। पोलैंड के एक एक्स मार्क्सवादी चिंतक लेसजेक कोलाकोवशकी ने लिखा है कि, “भूखे नंगे लोग जिनके पास जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं का सर्वथा अभाव है, वे पार्टी की मीटिंग में सरकार के झूठ को दुहराते हैं कि वे अत्यंत समृद्ध हैं, हालांकि उन्हें स्वयं इन नारों पर अर्ध विश्वास ही है। उन्हें मालूम है कि ‘सत्य’ तो पार्टी का मामला है, इसलिए झूठ ही उनका सच है, यद्यपि इस झूठ की सच्चाई से वे वाकिफ हैं। इस तरह से झूठ और सच की दो दुनिया में रहने वाले सोवियत नागरिक को पैदा करना ही सोवियत यूनियन की सम्पूर्ण उपलब्धि है”।
सोवियत सरकार द्वारा आतंक और झूठ को लगातार झुठलाया जाता रहा। आतंक और झूठ के सहारे सोवियत जनता तथा विरोधियों की न केवल हत्यायें ही कि गई बल्कि यह भी उम्मीद की जाती रही कि सोवियत जनता तथा विश्व के लोग के मस्तिष्क में इस आतंक और झूठ की याददाश्त को भी खत्म कर देंगे। पहले बिंदु में तो उन्हें सफलता मिली परन्तु लोगो के स्मृतियों से वे इसे नही मिटा सकें। यूक्रेन के एक पत्रकार तथा बुद्धिजीवी विटाली कोरोटिच ने कहा है कि सोवियत यूनियन सूचनाओं द्वारा समाप्त कर दिया गया और इन सूचनाओं की शुरुआत सोल्झनितसिन की पुस्तक “One Day In The Life Of Ivan Densyvich” से प्रारम्भ हो चुकी थी।
– शिवपूजन त्रिपाठी, लेखक भारतीय इतिहास एवं संस्कृति के गहन जानकर एवं अध्येता हैं
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