“Inside The Hindu Mall” – Abhijeet Singh

362
Inside The Hindu Mall इनसाइड द हिन्दू मॉल

Abhijeet Singh जी द्वारा लिखित “Inside The Hindu Mall” पुस्तक उन युवाओं के लिए एक रौशनी है जो हिन्दुत्व से दूर वामपंथ के अँधेरे कमरे में बन्द हो गए हैं। हर छोटे बड़े मुद्दे को एड्रेस करती यह पुस्तक कोई निर्णय नहीं सुना देती, बल्कि फिर एक बार सोचने को मजबूर कर देती है, प्राकृतिक और अनुभवजन्य सत्य के आधार पर। धर्म के बारे में बहुत जानने वालों के लिए यह पुस्तक नहीं है, क्योंकि उनके लिए तो अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हैं। यह किताब उनके लिए है जो देवदत्त पटनायक जैसों को पढ़ने के लिए पूरे सिंडिकेट द्वारा मजबूर कर दिए गए हैं। जिनके लिए यह लिखी गयी है वह इसे जरा भी ईमानदारी से पढ़ें तो उनका रिव्यू कुछ इस तरह का होगा—

“Inside The Hindu Mall, यह पुस्तक मेरे हाथ तब लगी जब मैं देश में हिन्दुत्व के बारे में हो रही बातचीत देखकर कहीं न कहीं कशमकश में था कि यह क्या है। मैं जिस स्कूल व वातावरण में पढ़ा, हिन्दू होना या न होना इस ओर मेरा ध्यान नहीं गया था, सिवाय इसके कि घर पर जो त्यौहार मनाए जाते हैं वह सब एक खुशी का अवसर थे और दादी की पूजा उनकी दिनचर्या। समाचारों से भी मैं दूर था पर कॉलेज में आने के बाद इन चीजों को मैंने नहीं भी देखा तो उन्होंने मुझे दिखाना शुरू के दिया, खासकर मेरे कुछ लेफ्टिस्ट मित्रों का राजनीतिक उत्साह भी सामाजिक और राष्ट्रीय मुद्दों की ओर मुझे घसीट रहा था। मेरे साथियों में ज्यादातर लोगों से हिन्दू धर्म के बारे में मैंने कोई न कोई कमतर बात सुनी जैसे बचपन से दिवाली होली पर play safe की बधाई आना जैसे मैं कोई खतरनाक काम करने जा रहा था। मेरे लेफ्टिस्ट मित्र जो ज्यादातर हिन्दू हैं, हिन्दुत्व शब्द के लिए उनकी बेचैनी देखकर मैं हिन्दुत्व शब्द को जानने के लिए कुछ ऐसा ढूंढ रहा था जो मुझे बता सके कि मेरा हिन्दू होना इसमें क्या कुछ खास है बस ऐसी बातें एक राजनीति का हिस्सा हैं। अभिजीत सिंह जी की यह किताब मिलना एक ऐसा माध्यम बना जिसने मैं हिन्दू क्यों हूँ यह मुझे नहीं बताया तो यह बताया कि मुझे हिन्दू क्यों होना चाहिए था, पर यह भी कि आगे मेरे मौके खत्म नहीं हुए हैं।

मेरे लेफ्टिस्ट मित्र जिस न्याय, समाज, एनवायरमेंट, इक्वैलिटी, टॉलरेंस, गरीब, संसाधन आदि की बात करते हैं, वह सब उनके कितना पास ही था, व है, पर अनजाने में वे उसे खत्म कर रहे थे। वह हिन्दू धर्म के बेसिक स्ट्रक्चर में ही समाहित है जो हमारे देश को सदियों से बचाकर रखे हुए है और जिसके लिए हमें फॉरन स्कॉलर्स की ओर मुँह ताकना पड़ रहा है। बल्कि मुझे ग्लानि है कि मैं उनसे थोड़ा प्रभावित हुआ, वह अपने अज्ञान से कि मैं अपने हिन्दू होने के अस्तित्व की पहचान नहीं कर पाया था।

लेखक ने इस पुस्तक “Inside The Hindu Mall” में इस ओर मेरी सोच को आकर्षित किया कि क्लाइमेट कल्चर का हिस्सा है,  जिसे मुझे तब ही अनुभूति कर लेना चाहिए था जब बचपन में मेरी माँ और दादी तुलसी की पूजा कर रही थीं। पर सभी पशु पक्षियों पहाड़ों नदियों पत्थरों आसमां तारों को मैंने जब अपना व अपने से ऊँचा जिसकी पूजा करनी चाहिए के तौर पर देखा तो मैं खुशी से उछल पड़ा, सारे एनवायरमेंट कन्वेंशन हिन्दू अप्रोच से छोटे लग रहे हैं। व यही पर्यावरण मनुष्य का धार्मिक पूज्य बन उसके आर्थिक क्रियाकलाप और सामाजिक संरचना में भी ऐसे रचा बसा है कि इसमें से कुछ भी कम करने पर एक बहुत बड़ी व्यवस्था ढ़ह जाएगी जिसे सोचने पर केवल हानि नजर आती है।

पुस्तक में जो नाम आए हैं वह इतने प्रभावशाली होकर अनजाने रहे इसलिए परेशान हुआ, श्रवण कुमार, बुद्ध, स्वामी विवेकानंद, मनु का नाम जानता था पर प्रसेनजीत, दुष्यंत, जाबालि, दत्तात्रेय, शिवि, मदालसा, अलर्क को नहीं जिनकी कहानी किसी को भी अचंभित कर सकती है। और वेद उपनिषद महाभारत पुराण की ऐसी बातें जो कभी नहीं सुनीं, उन्हें सुना होता काश यह सोचकर अब नॉवेल्स की जगह यही पढ़ना दिलचस्प लग रहा है।

इसका नाम लेखक ने बहुत सूझबूझ भरा रखा है “Inside The Hindu Mall”। जैसे मॉल में तमाम चीजें एक ही जगह मिल जाती हैं। वैसे ही यह पुस्तक इतने बड़े परिप्रेक्ष्य और विषयों को एक झटके में सामने रख देती है कि हिन्दू धर्म के बारे में सामाजिक विभेद, या इन्टॉलरेंस, या व्यवहार, के बारे में सारे भ्रमों को तोड़ती है, सबसे बड़ी बात है कि एक नई दृष्टि देती है इसलिए मैंने इस हिन्दू मॉल से एक ही चीज ख़रीदी है, एक नया चश्मा। अज्ञानता और प्रोपेगैंडा का नम्बर कम हुआ है, हिन्दू धर्म मेरा चश्मा पूरी तरह उतार देगा, ऐसा फील आ रहा है। जाहिर है यह बुक हर उस हिन्दू को तो एक बार पढ़ लेनी चाहिए जो कहीं न कहीं अपने को हिन्दू मानता है पर दिमाग में एक प्रश्नचिन्ह भी है, यह अपने अस्तित्व की खोज के कई मार्ग खोल देती है…”

किताब की कीमत कोरियर चार्ज के साथ जो रखी गई है, वो इस तरह है :-

1 प्रति :- 200 रुपये (कोरियर चार्ज 50 के साथ)

5 प्रति :- 850 रुपये (कोरियर चार्ज के साथ)

10 प्रति :- 1500 रुपये (कोरियर चार्ज के साथ)

नोट :- 10 के ऊपर के लिए संपर्क करना होगा ताकि और रियायती दर पर प्रकाशक से संपर्क कर इसे उपलब्ध कराया जा सके।

प्राप्ति के लिए Paytm संख्या 9310034974 पर पेमेंट कर इसी नम्बर पे व्हाट्सएप कर अपना पता और पेमेंट डिटेल्स भेजकर भेजकर पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं। एकाउंट ये है :-

Sakar corporation
Bank of baroda
Naraina branch
Acc. No : 07920200001346
IFSC code : BARB0INDNAR
“0” in IFSC CODE IS ZERO

उपरोक्त लेख आदरणीय लेखक की निजी अभिव्यक्ति है एवं लेख में दिए गए विचारों, तथ्यों एवं उनके स्त्रोत की प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु The Analyst उत्तरदायी नहीं है।

1 COMMENT

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here