क्या मनुस्मृति महिलाओं का विरोध करती है ??

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manusmriti मनुस्मृति

आजकल कई वामपंथी और नारीवादी हिन्दू धर्म का विरोध करने के लिए हिन्दू धर्मग्रंथ मनुस्मृति पर स्त्रीविरोधी और पितृसत्तात्मक होने का आरोप लगाते हैं जबकि सत्य कुछ और ही है। आश्चर्य तब होता है जब यही लोग कुरान को स्त्री की हितैषी बताते हैं। मनुस्मृति में स्त्रियों के बारे में अनेक ऐसे श्लोक हैं जो स्त्री को बहुत उंचा दर्जा देते हैं और स्त्री के सुख का पूर्ण रूप से ख्याल रखते हैं। आज हम मनुस्मृति के अनुसार पिता की सम्पत्ति के बंटवारे के नियम को देखते हैं कि वह महिलाओं का कितना ध्यान रखता है।

कुल संपत्ति का 20वाँ भाग बड़े भाई को अधिक देना चाहिए। उससे छोटे को 40वाँ भाग अधिक देना चाहिए। बाकी का सब भाई आपस में बराबर बराबर बांट लें। बड़ा भाई अधिक गुणवान हो तो सब पदार्थों में से श्रेष्ठ पदार्थ बड़े भाई को देकर उसका सम्मान करना चाहिए। सब भाई बराबर के गुणवान हों तो श्रेष्ठ पदार्थ बराबर बांट लें पर बड़े भाई के सम्मान के लिए कुछ अधिक दें। पर प्रत्येक भाई अपनी संपत्ति का चौथा भाग अपनी कुमारी बहन को दें। जो नहीं देते वह पतित हो जाते हैं।

 – मनुस्मृति, नवां अध्याय, श्लोक 112-118

इस नियम के कुछ उदाहरण देखते हैं-

पहला उदहारण

एक करोड़ की संपत्ति है और 3 भाई व 1 बहन है तो यह हिसाब हुआ।

एक करोड़ का बीसवाँ भाग हुआ 5 लाख जो बड़े भाई के लिए व 40वाँ भाग हुआ ढाई लाख जो मंझोले भाई के लिए अलग होगा।

तो 92.5 लाख का अब होगा बराबर बंटवारा = 92.5/3= 30.83 लाख

तो बड़े भाई को मिला = 30.83+5 = 35.83 लाख
मंझोले को मिलेगा = 30.83+2.5= 33.33 लाख
सबसे छोटे को मिलेगा = 30.83 लाख

तीनों भाई अपना 25-25 प्रतिशत छोटी बहन को देंगे तो बहन को मिलेगा 25 लाख।

फाइनल हुआ :-

बड़ा भाई = 26.87 लाख
मंझोला भाई = 25 लाख
छोटा भाई = 23.12 लाख
बहन = 25 लाख

दूसरा उदाहरण

3 भाई और 3 बहन हो तो

तीन भाइयों का हिस्सा ऊपर के उदहारण में लिखा ही है। उसके बाद कुमारी बहन को 25% देने का विधान है। यदि बहनें बंटवारे से पहले ही विवाहित हों तो 25% नहीं देना है। क्योंकि उनपर पिता पहले ही विवाह में हिस्सा दे देते हैं। यदि तीनों बहन ही कुंवारी हैं तो पहले तीनों भाई एक को 25 % दें। फिर जो बचे उसका 25% दूसरी को दें। फिर जो बचे उसका 25% तीसरी को दें। यही धर्म है। चाहे खुदके पास न्यून बचे।पैतृक संपत्ति पर ही अवलम्बित रहना पुरुषार्थ नहीं है। स्वयं धर्म से अर्जित धन का ही धर्म में महत्व है। कहीं कहीं तो शास्त्र में लिखा है पैतृक संपत्ति को दान करदे। बहन आदि को देने से शास्त्र अनुसार वृद्धि होती है। न देने से दोष लगता है।

अब पाठक स्वयं बताएं कि क्या हिन्दू धर्म पितृसत्तात्मक और स्त्रीविरोधी है? अपनी राय कमेन्ट में दें…

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