भारत या किसी भी देश में जबतक मदरसे रहेंगे तबतक जिहादी मानसिकता और आतंकवाद रहेंगे।
मदरसा शब्द की व्युत्पत्ति
सेमेटिक भाषाओं में “द् र् स्” धातु से मद्रसः शब्द की व्युत्पत्ति अरबी में हुई जिसे उर्दू में मदरसा कहते हैं। बिना स्वर के कोई शब्द या धातु बन ही नहीं सकता,सेमेटिक धातु की अवधारणा ही कृत्रिम और बाद की है ताकि वैदिक उत्पत्ति को छुपाया जा सके। मूल धातु है संस्कृत का “दृश्” जिससे अरबी में “द् र् स्” बनाया गया। सेमेटिक में इस धातु का अर्थ है ज्ञान पाना या सीखना। संस्कृत में अर्थ है देखना,किन्तु प्राचीन मूल अर्थ था दिव्य चक्षु द्वारा देखना अर्थात् वास्तविक ज्ञान पाना,जिससे “दर्शन” या फिलासफी की उत्पत्ति हुई।
अरब बद्दू कबीलों में औपचारिक शिक्षा के संस्थान नहीं थे । प्रथम मद्रसः की स्थापना पैगम्बर मुहम्मद ने की,और मदीना जाने के पश्चात उसे विधिवत् चलाया जिसमें साम्प्रदायिक शिक्षा एवं युद्धकला का प्रशिक्षण दिया जाता था,अन्य विषयों की आवश्यकता पैग़म्बर ने स्वीकार नहीं की।
आज भी कट्टर इस्लामी मानसिकता वाले जिहादियों के लिये केवल दो ही विषयों का महत्व है —
(1) कुरान और हदीस आदि की साम्प्रदायिक शिक्षा,एवं
(2) युद्धकला ।
क़यामत तक इस्लाम पृथ्वी पर रहेगा (क़यामत के पश्चात इस्लाम नहीं रहेगा क्योंकि सारे मुसलमान जन्नत और दोज़ख चले जायेंगे,गैर−मुसलमान ही पृथ्वी पर बचेंगे) और क़यामत तक साम्प्रदायिक शिक्षा एवं युद्धकला मदरसों का प्रमुख विषय बना रहेगा,हालाँकि गैर−इस्लामी देशों में युद्धकला का प्रशिक्षण गुप्त रूप से देना पड़ता है।
जो लोग कहते हैं कि मदरसों का उद्देश्य अन्य स्कूलों की तरह सभी विषयों का अध्यापन है वे जानबूझकर झूठ बकते हैं। पैग़म्बर के लिये मदरसा का क्या अर्थ होना चाहिये इसका सबूत देखें —
“The first institute of madrasa education was at the estate of Zaid bin Arkam near a hill called Safa, where Muhammad was the teacher and the students were some of his followers. After Hijrah (migration) the madrasa of “Suffa” was established in Madina on the east side of the Al-Masjid an-Nabawi mosque. Ubada ibn as-Samit was appointed there by Muhammad as teacher and among the students. In the curriculum of the madrasa, there were teachings of The Qur’an, The Hadith, fara’iz, tajweed (कुरआ़न का शुद्ध उच्चारण) , genealogy, treatises of first aid, etc. There were also trainings of horse-riding, art of war, handwriting and calligraphy, athletics and martial arts.”
तुर्की में कमाल पाशा ने आधुनिक शिक्षा और यूरोपीयन रहन−सहन को बढ़ावा देना आरम्भ किया किन्तु मदरसों पर पाबन्दी नहीं लगायी,फल हुआ ढाक के तीन पात — सौ वर्ष के पश्चात भी आज तुर्की जिहादियों का अन्तर्राष्ट्रीय गॉडफादर है,हाल में भारत ने अपने संविधान के अनुच्छेद−370 में सुधार किया तो पाकिस्तान का साथ केवल तुर्की ने दिया!बगदादी का सारा तेल तुर्की ही खरीदता था,वरना बगदादी के सारे लड़ाके भूखों मर जाते।
मध्ययुगीन जिहादी बर्बरता से संसार को मुक्ति दिलानी है तो मदरसों पर पाबन्दी अनिवार्य है। उत्तर अमरीका महाद्वीप में 1983 से पहले एक भी मदरसा नहीं था,जिस कारण आतंकवाद नहीं था। 1983 में भारतीय उलेमाओं के नेतृत्व में कनाडा में पहले मदरसे की स्थापना हुई जहाँ से 2002 में अमरीका में भी इस्लामी संस्था खोले जाने लगे,अभी न्यूयॉर्क में दो मदरसे हैं किन्तु अधिकांश अमरीकी राज्यों में एक भी मदरसा नहीं है जिस कारण आतंकवाद नगण्य है।
यह सच है कि बगदाद के खलीफाओं और बाद के कालों में मदरसों में गणित आदि सेक्यूलर विषयों का भी अध्यापन होने लगा,किन्तु पैग़म्बर के अनुसार मदरसा में केवल इस्लाम और युद्ध का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिये। जिहादी प्रशिक्षण को छुपाने के लिये ही कुछ सेक्यूलर विषय जोड़े जाने लगे हैं,पर उनकी वास्तविक रुचि केवल जिहाद में है। इस्लाम में “जिहाद” का अर्थ है इस्लामी उद्देश्य के लिये संघर्ष या युद्ध।
दूसरे सम्प्रदायों के साथ शान्तिपूर्ण सह−अस्तित्व इस्लाम के स्वभाव में हजरत मुहम्मद के समय से ही नहीं है। इस्लाम यथास्थिति को स्वीकार नहीं करता,दूसरे सम्प्रदायों का विनाश और पैग़म्बर मुहम्मद के मार्ग पर हर किसी को लाना इस्लाम का एकमात्र लक्ष्य आरम्भ से ही रहा है। इस कट्टर जिहादी सोच को त्याग दिया जाय और मुसलमानों को सामान्य मनुष्य की तरह पढ़ना−लिखना और सोचना सिखा दिया जाय तो इस्लाम खतरे में आ जायगा!इस्लाम को जीवित रखने वाली सँजीवनी है कट्टर जिहादी सोच जो मदरसों के माध्यम से ही फलती−फूलती है।
सच्चे मुसलमान के लिये जिहाद से अधिक पवित्र अन्य कोई कार्य नहीं है,जिहादी को जन्नत और 72 हूर आदि मिलते हैं और सारी हूरें अगले दिन पुनः कुमारियाँ बन जाती हैं। सारे जिहादी जन्नत में हूरों के साथ लगातार “जिहाद” करते रहते हैं — हूरों के साथ नॉन स्टॉप “जिहाद” से बेहतर कोई परमानन्द हो सकता है यह क़ाफ़िरों की उपनिषद या गीता जैसी बेकार क़िताबों का फलसफा है!
उपरोक्त से निम्नोक्त का कोई सम्बन्ध नहीं है ।
पिशाचधर्मलक्षणम् —
जिहाद−उम्मा मदः स्तेयं अशौच−इन्द्रियानुग्रहः
अधीः अविद्या असत्यक्रोधः दशकं अधर्म लक्षणं ॥
धर्मदूषकाः मूसलवन्तो पुनरागमनं पाकिस्ताने ।
म्लेच्छदेशे पिशाचवेशे लिङ्गच्छेदी भवेत्−नरः॥
– आचार्य श्री विनय झा
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