नमन है म्यांमार की नोबल विजेता माँ आंग सान सू की को, जो अंतराष्ट्रीय दबाव को दरकिनार कर अपने देश के साथ अडिगता से खड़ी रहीं। अनेक अवार्ड पहले ही छीन लिए जाने और वैश्विक वामपंथी शक्तियों द्वारा नोबल छीनने की धमकियों को धता बताकर उन्होंने अपने देश का साथ दिया। आज ब्रह्मदेश का जन जन सू की को माँ का दर्जा देकर उनके सम्मान में पलक पावड़े बिछाकर उनका स्वागत कर रहा है।
जब 57 इस्लामिक देशों का प्रतिनिधि बनकर गाम्बिया ने म्यांमार को रोहिंग्याओं के व्यापक नरसंहार का आरोप लगाकर इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में घसीटा तो आंग सान सू की ने स्वयं अंतराष्ट्रीय अदालत में राष्ट्र का बचाव पक्ष रखने की घोषणा कर दी। इससे दानवों के लिए लड़ने वाले मानवाधिकार संगठनों, अशांति फैलाने वाले शांति समर्थकों और वैश्विक वामपंथी जमात हतप्रभ रह गया कि आज किसी देश पर वैचारिक नकेल कसने वाले उनके कूटनीतिक उपकरण नोबल पुरस्कार की प्रतिष्ठा के परखच्चे उड़ा दिए गए, आज एक स्वाभिमानी महिला ने जंजीररूपी सम्मान को राष्ट्रहित में अवहेलित कर दिया।
सू की ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर दृढ़ता से कहा कि, “अंतर्राष्ट्रीय समुदाय रखाइन राज्य की वास्तविक स्थिति को नहीं समझता है। न म्यांमार ने नरसंहार किया है न ही यह अंतरराष्ट्रीय अदालत का मसला है। म्यांमार की आवश्यक सैन्य कार्रवाई को तो देखा जा रहा है पर रोहिंग्या के आतंकवादी तत्वों को दरकिनार किया जा रहा है।” अब सारा म्यांमार कह रहा है, “माँ सू हम आपके साथ खड़े हैं।”, “माँ सू दुनिया की सबसे साहसी महिला हैं।”
आज दुर्गा सप्तशती का यह मंत्र सिद्ध हो रहा है,
“या देवी सर्वभूतेषु जातिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तयै नमस्तस्यै नमो नमः।।”
“माँ भगवती समस्त भूतों में जाति के रूप में स्थित हैं। उन्हें नमन है, उन्हें नमन है, उन्हें नमन है।”
भूमि की दृष्टि से सजातीय बर्मावासियों की माँ बनकर, आंग सान सू की अपने बच्चों को वामपंथी कुत्तों के क्रूर पंजों से छुड़ाने, उनकी रक्षा, उनके सम्मान की लड़ाई लड़ रही हैं। वहीं भारत के समस्त नोबल विजेता तो विदेशी शक्तियों के चरणचुम्बन करके, राष्ट्र को भेड़ियों से नुचता देखने में आनंद अनुभूत करते है। यहाँ तो यह सिद्ध है कि नोबल विजेता है तो देश विरोध ही करेगा। यहाँ कोई आंग सान सू की जैसा राष्ट्रभक्त नहीं है जो सजातीयों के लिए संसार की समस्त शक्तियों से भिड़ जाए।
यहाँ तो भारतवंशी नोबल विजेता कथित वैज्ञानिक वेंकट रामकृष्णन नाम का “विज्ञानासुर” नागरिकता बिल पर अपने बेहूदे तर्क देकर सजातीयों के रक्तपिपासु बनने का कार्य कर रहा है। देश जल रहा है तो शांति का कथित दूत कैलाश सत्यार्थी देश की शांति के लिए क्यों नागरिकता बिल का समर्थन करके इसका सत्य सामने नहीं रख रहा है? क्या अपने नाम की सार्थकता इसने सत्य की अर्थी निकलते देखने में ही सोच रखी है? यही ‘नोबल’ अर्थात् श्रेष्ठता है? इन विदेशी शक्तियों के गुलामों का शांतिवाद और मानवतावाद केवल मानवता के शत्रुओं के लिए ही होता है।
माँ आंग सान सू की आपने अपने देश पर जो ममता बरसाई है, देश के बच्चों को अपने प्रेम से भिगोने वाली ऐसी एक माँ की हम इस देश में कमी अनुभव कर रहे हैं। यहाँ तो ममता बनर्जी जैसी पूतनाएं देश को विष पिला रही हैं। जातिस्वरूपा भारतमाता स्वरूपा भगवती पराम्बा से प्रार्थना है एक आंग सान सू की इस भरतखण्ड पर भी भेजें, जो समस्त विश्व के सामने गर्व से उद्घोष करे, “हाँ हाँ मैं हिन्दू हूँ।”
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