नरेन्द्र मोदी इजरायल पर क्या सोचते हैं?

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प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इजरायल पर, अपनी पुस्तक ‘सेतुबन्ध’ में लिखते हैं,

“दो हजार वर्ष पूर्व आक्रमणकारियों ने इजराइल को तहस-नहस कर डाला। वहाँ के कुछ लोग विश्व में भिन्न-भिन्न स्थानों में बिखर चुके थे, फिर भी अपने आत्मगौरव से भरे पहले और दूसरे विश्वयुद्ध की परिस्थिति का लाभ उठाकर उन्होंने अपना राष्ट्र खड़ा किया। आज तेरह-तेरह दुश्मनों से घिरा होते हुए भी वह अपने दुश्मनों को झुकाकर आगे बढ़ रहा है।

इजराइल ने यह जादू किस तरह किया, इसे जानने के लिए एक पत्रकार वहाँ गए थे। यह पत्रकार ने केवल ‘ज्यू’ अर्थात् लोभी व्यापारी ‘ज्यूपीव’ अर्थात् ‘मक्खीचूस’ आदि के बारे में ही सुन रखा था; परंतु ऐसे ‘ज्यू’ लोगों ने केवल कुछ ही दिनों में अपने सभी शत्रुओं को कैसे परास्त कर दिया, उसे पता चला। प्रत्येक इजराइली सैनिक वेतन के लिए नहीं, अपितु राष्ट्र के लिए लड़ा और उन्हीं दिनों ही नहीं, भविष्य में भी अपने देश के लिए स्वाभिमान से, गौरव से स्थिर खड़ा रहा। सैनिकों की इस भावना के साथ-साथ सामान्य नागरिकों ने भी अपनी-अपनी भूमिका अदा की।

राष्ट्र भावना की विस्मृति

जैसे कोई राष्ट्र उस राष्ट्र के नागरिकों से श्रेष्ठ होता है, वैसे ही राष्ट्र का पतन भी उस देश के लोगों में राष्ट्र भावना न होने से होता है। हमारे देश का इतिहास इस बात का प्रत्यक्ष साक्षी है। मुहम्मद बिन कासिम ने सिंध पर आक्रमण किया, अन्य मुसलमान सरदारों ने भी आक्रमण किया। मंदिरों को तोड़कर वहाँ मस्जिदें खड़ी कीं, अनेक हिंदुओं को मुसलमान बनाया; परंतु समाज में जागृति अभाव के कारण मस्जिद और मुसलमान वैसे के वैसे रहे।

दुनिया के भिन्न-भिन्न देशों के इतिहासों को देखें तो हमें मिलता है कि समाज के केवल कुछ लोगों के अच्छे होने से उसकी उन्नति नहीं हो सकती। उस देश के सामान्य नागरिक का व्यक्तिगत एवं सामाजिक चरित्र भी ऊँचा हो, तभी वह राष्ट्र विश्व में स्वाभिमान से ऊँचा रह सकता है । ‘A Nation is as great or small as its average citizens. ऐसा कहा जाता है। यह सत्य है।

इस दृष्टि से इंग्लैंड का उदाहरण लिया जा सकता है। फ्रांस, बेल्जियम आदि देशों की देखते-ही-देखते पराजय हुई। इतना ही नहीं, डंकर्क में इंग्लैंड को भी शर्मनाक पराजय स्वीकारनी पड़ी। आज तक दुनिया में इंग्लैंड विषयक जो नाम था, इस पराजय से उसको धक्का लगा; परंतु वहाँ की प्रजा का आत्मविश्वास अभी डगमगाया नहीं था। उसका जोश अभी भी टिका था। इंग्लैंड की प्रजा ने चर्चिल के नेतृत्व में परिस्थिति का बड़े आत्मविश्वास के साथ सामना किया और अंत में वह विजयी रहा। स्वाभाविक रूप से वहाँ की जनता ने चर्चिल को स्वीकार किया। इस सत्कार समारोह में एक वक्ता ने कहा, ‘Mr. Churchil is the lion of England’ चर्चिल ने इसका उत्तर देते हुए कहा, ‘You are the lion of England. I simply roared for you. चर्चिल अच्छी तरह जानते थे कि किसी भी देश की सच्ची ताकत उसकी प्रजा में होती है, किसी एक दो व्यक्ति में नहीं। इजराइल का इतिहास भी यही बताता है।”

— प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी इजरायल पर, अपनी पुस्तकसेतुबन्धमें

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उपरोक्त लेख आदरणीय लेखक की निजी अभिव्यक्ति है एवं लेख में दिए गए विचारों, तथ्यों एवं उनके स्त्रोत की प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु The Analyst उत्तरदायी नहीं है।

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