केन्द्रीय विद्यालयों में संस्कृत प्रार्थना पर बैन क्यों?

असतो मा सद्गमय संस्कृत प्रार्थना

केन्द्रीय विद्यालयों में संस्कृत प्रार्थना पर बैन क्यों?

असतो मा सदगमय ॥ तमसो मा ज्योतिर्गमय ॥ मृत्योर्मामृतम् गमय ॥

हमें असत्य से सत्य की ओर ले चलो ॥ अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ॥ मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥

Lead me from falsehood to truth, Lead me from darkness to light, Lead me from death to the immortality.

बृहदारण्यक उपनिषद् से उद्धृत इन संस्कृत सूत्रों की बचपन से अनवरत प्रार्थना करते आये मेरे जैसे न जाने कितने लोग, पर आज तक ये नहीं पता चला कि इसमें भी कोई धार्मिक एंगिल हैं क्योंकि हमें हमेशा यही बताया गया और हमने यही समझा भी कि ये धर्म, सम्प्रदाय, जाति, लिंग जैसे विभेदों से बहुत ऊपर मानवमात्र के उत्थान के लिए सर्वशक्तिमान से प्रार्थना करने वाले वाक्य हैं| वसुधैव कुटुंबकम के मूलमंत्र को अपने जीवन में उतारने वाली सनातन संस्कृति के प्राचीन ग्रंथों में इस तरह की संस्कृत प्रार्थनायें बार बार मिलती हैं क्योंकि यह संस्कृति वो रही जिसने कभी मात्र स्वयं के लिए कुछ माँगा ही नहीं, जब भी माँगा समस्त चराचर जगत के कल्याण के लिए माँगा| परन्तु अब स्वतंत्रता के भी 70 वर्षों बाद हमें ये बताया जा रहा है कि हमारे जीवन दर्शन का आधार रहे ये सूत्र देश की धर्मनिरपेक्षता पर चोट करते हैं क्योंकि ये एक धर्म विशेष के प्राचीन ग्रंथ से लिए गए हैं|

आश्चर्य इस पर नहीं कि किसी धूर्त को इस तरह की याचिका सर्वोच्च न्यायालय में डालने की सूझी क्योंकि इस देश की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत, मूल्यों, परम्पराओं और हर उस बात को जो सनातन संस्कृति से जुडी है, हानि पहुँचाने के लिए कितने ही हिन्दू नामधारी पर विधर्मी कामधारी दिन रात एक किये दे रहे हैं| आश्चर्य न्याय के उस कथित मंदिर में बैठे स्वघोषित भगवानों पर है जिनके लिए कभी हिन्दू एक जीवन पद्धति थी और आज उन्हें हिन्दुओं से जुडी हर बात पर आपत्ति है| वरना क्या कारण है कि जिस सर्वोच्च न्यायालय में 1 नवम्बर 2017 के आंकड़ों के अनुसार 55,259 मामले पेंडिंग हैं, जहाँ से न्याय पाने एक आदमी की पीढ़ियों की पीढ़ियाँ गुज़र जाती हैं, जहाँ जायज मामलों को लेकर न्याय पाने की उम्मीद रखने वाले लोगों को अपनी बात कहने के 2 मिनट नहीं मिलते; वहाँ अभारतीयता और हिन्दू विरोध से ग्रस्त लोगों के मामले न केवल बड़ी आसानी से सुनवाई पर आते हैं, बल्कि उन पर ये सबसे ऊँची अदालत सरकारों से जबाव तलब भी कर लेती है|

सर्वोच्च न्यायालय में बैठे न्याय के इन कथित भगवानों को ये पता होना चाहिए कि अगर केवल सनातन संस्कृति के किसी ग्रन्थ का भाग होने एवं संस्कृत में होने के कारण ‘असतो मा सद्गमय’ जैसा संस्कृत मंत्र देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र पर चोट पहुँचाने वाला माना जाएगा और उसके केंद्रीय विद्यालयों में प्रार्थना में शामिल होने पर प्रश्न खड़े किये जाएंगे तो केरल शासन, बेहरामपुर विश्वविद्यालय उड़ीसा, उस्मानिया विश्वविद्यालय आंध्र प्रदेश, कन्नूर विश्वविद्यालय केरल, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान कालीकट केरल, राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान श्रीनगर, आईआई टी कानपुर और सी बी एस ई इन सभी पर बैन लगा देना होगा क्योंकि इन सभी के आदर्श वाक्य भी बृहदारण्यक उपनिषद् के उपरोक्त संस्कृत वाक्यों में से ही कोई ना कोई हैं|

असतो मा सद्गमय संस्कृत प्रार्थना

फिर तो इस देश में और भी बहुत कुछ बदलना होगा क्योंकि स्वयं इस देश के राष्ट्रीय वाक्य से लेकर यहाँ की रग रग में इस तरह के सूत्र वाक्य समाये हुए हैं| किस किस को खत्म करोगे अन्यायमूर्तियों, किस किस पर बैन लगाओगे?

भारतीय गणतंत्र और उसके राज्यों पर—–

भारतीय गणतंत्र–सत्यमेव जयते–मुंडकोपनिषद
केरल शासन–तमसो मा ज्योतिर्गमय–बृहदारण्यक उपनिषद्
गोवा शासन–सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चिद्दुःखभाग्‌भवेत्— गरुड़ पुराण

भारत की सैन्य, सामरिक और पुलिस शक्ति पर—-

भारतीय नौसेना–शं नो वरुणः–तैत्तिरीय उपनिषद
भारतीय वायुसेना–नभः स्पृशं दीप्तम्— भगवद्गीता
भारतीय तटरक्षक बल–वयं रक्षामः–बाल्मीकि रामायण
रिसर्च एन्ड एनालिसिस विंग (RAW)–धर्मो रक्षति रक्षितः–मनुस्मृति
उत्तर प्रदेश पुलिस–परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्–भगवतगीता

भारत की शिक्षण संस्थाओं पर—-

मैसूर विश्वविद्यालय–ना हि ज्ञानेन इति सदृशं–भगवतगीता
गुजरात राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय–आ नो भद्राः क्रतवो यन्तु विश्वतः–ऋग्वेद
केंद्रीय विद्यालय–तत् त्वं पूषन्नपावृणु–ईशावास्य उपनिषद
नेशनल एकेडमी ऑफ़ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च यूनिवर्सटी–धर्मे सर्वं प्रतिष्ठितम्–महानारायण उपनिषद

भारतीय गणतंत्र के संस्थानों पर—-

जीवन बीमा निगम–योगक्षेमं वहाम्यहम्–भगवतगीता
भारतीय पर्यटन विकास संस्थान–अतिथि देवो भवः–तैत्तिरीय उपनिषद
भारतीय रिजर्व बैंक (बैंकर्स ट्रेनिंग कॉलेज)–बुद्धौ शरणमन्विच्छ–भगवतगीता
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग–आदित्यात् जायते वृष्टिः–मनुस्मृति

ये तो कुछ उदाहरण भर हैं और ऐसे अनगिनत संस्थान और संगठन हैं जो भारत की धर्मनिरपेक्षता के लिए ‘खतरा’ हैं; तो ऐसा करो ‘अ’न्याय के ‘भगवानों’, धर्मनिरपेक्षता का ढिंढोरा पीटने के लिए इन सब को बंद कर दो| पर उससे पहले अपने उस कथित मंदिर को भी जिसमें बैठ कर तुमलोग धतकरम कर रहे हो| आखिर उसका आदर्श वाक्य ‘यतो धर्मस्ततो जयः’ भी तो हिन्दुओं के ही संस्कृत ग्रन्थ महाभारत से ही लिया गया है|

 विशाल अग्रवाल (लेखक भारतीय इतिहास और संस्कृति के गहन जानकार, शिक्षाविद, और राष्ट्रीय हितों के लिए आवाज़ उठाते हैं। भारतीय महापुरुषों पर लेखक की राष्ट्र आराधक श्रृंखला पठनीय है।)

यह भी पढ़ें,

सिविल सर्विसेज़ परीक्षा में भारत के इतिहास बोध की गला घोंटकर हत्या का कुचक्र

क्षमा कीजिएगा, आपका फिल्मी डांस कला नहीं काला है

भारत पर ईसाईयत के आक्रमण का इतिहास

“द सिटी ऑफ गॉड” – ऑगस्टीन का पैगन पर हमला

कन्याकुमारी का विवेकानंद शिला स्मारक, एक एतिहासिक संघर्ष का प्रतीक

उपरोक्त लेख आदरणीय लेखक की निजी अभिव्यक्ति है एवं लेख में दिए गए विचारों, तथ्यों एवं उनके स्त्रोत की प्रामाणिकता सिद्ध करने हेतु The Analyst उत्तरदायी नहीं है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here