केरल के सबरीमाला मंदिर में युवा लड़कियों/ महिलाओं का प्रवेश वर्जित…शिगनापुर शनि मंदिर में लड़कियों का प्रवेश वर्जित…
मीडिया में चल रही ऐसी कुछ ख़बरों/ ब्रेकिंग न्यूज़ के बीच आज कुछ रहस्योद्घाटन करना इसलिए जरूरी हो गया है क्योंकि इधर लगातार वेटिकन और अरब के पैसे से अपना चकलाघर चला रहे NGO और दलाल मीडिया हिन्दुओं को स्त्री विरोधी और रूढ़िवादी साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। हिन्दुओं की भावना को अपार ठेस पहुंचाते हुए, लाखों अय्यप्पा भक्तों के विरोध को दरकिनार करते हुए मिशनरी, जिहादी और वामपंथी त्रिगुट ने सबरीमाला की आठ सौ वर्ष पुरानी परंपरा को जबरदस्ती तोड़ दिया और सबरीमाला की पवित्रता को नष्ट किया, जिस कारण मन्दिर के शुद्धिकरण हेतु उसे अनिश्चितकाल तक बंद कर दिया गया है|

अभी-अभी केरल से आई एक खबर ये है कि एक लाख से अधिक ईसाई “Women Wall” नाम से एक मार्च निकालने वाले हैं ताकि शबरीमला में युवा महिलाओं को प्रवेश दिलवाया जा सके। ऐसे में ये देखना बड़ा दिलचस्प है कि ये लोग खुद स्त्री हितों के कितने बड़े पोषक हैं और स्त्री जाति के लिये इनके यहाँ कितना सम्मान भाव है।
बाइबल के पूर्वभाग ओल्ड टेस्टामेंट के ‘निर्गमन ग्रन्थ‘ नामक किताब के 22 वें अध्याय के 17 वें वचन में आदेश है :-
“तुम जादूगरनी को जीवित नहीं रहने दोगे”
दुनिया के किसी भी मजहबी किताब में आया यह अकेला वाक्य है जिसके ऊपर सबसे अधिक अमल किया गया क्यूंकि किताब के इस आदेश का पालन करते हुए तकरीबन पांच शताब्दियों के अंदर केवल यूरोप में इनलोगों ने 90 लाख महिलाओं को चुड़ैल और डायन बताकर उनकी निर्मम हत्या कर दी। चर्च के पदाधिकारियों ने 1486 में अपने अनुयाइयों के लिए The Malleus Maleficarum (The Witch Hammer), नाम से एक किताब प्राकशित की (इस किताब को मानव इतिहास के सबसे निर्मम और सबसे अधिक कत्लेआम की किताब माना जाता है)। इस किताब में दुनिया भर के पादरियों को निर्देश दिए गए थे कि डायनें धरती पर शैतान की प्रतिनिधि हैं इसलिए जादू-टोना करने वाली हर स्त्री को चुन-चुन कर जिन्दा जला दिया जाये। जहाँ-जहाँ इनके कदम गये वहां के लोगों की मूल पूजा-विधि को उन्होंने डायन विधा और शैतानी अनुष्ठान घोषित कर दिया और उनकी नृशंस हत्या करवा दी।

पोप इनोसेंट इस किताब The Malleus Maleficarum का मुख्य भूमिकाकार था। चर्च की तरफ से उसने दुनिया भर में ऐसे पादरी भेजे जिनका दावा था कि वो डायनों को देखतें ही पहचान सकतें हैं। डायनों को खोजने वाले इन एक्सपर्ट्स को “विच फाइंडर” कहा जाता था जिसमें सबसे बड़ा नाम है इंग्लैंड के मैथ्यू हॉपकिन्स नाम के पादरी का जिसने अकेले सन 1645 से 1647 के बीच हज़ारों महिलाओं को डायन घोषित किया। जो महिला डायन होने के आरोप से इनकार करती थी हॉपकिन्स उसपर तब तक जुल्म करता था जब तक वो डायन होना स्वीकार न ले और जब एक बार उसने स्वीकार कर लिया फिर उसे जिन्दा जला दिया जाता था।
ये अत्याचार कथा केवल मध्य युग की ही नहीं है। फ्रांस की महान देशभक्त महिला जॉन आफ आर्क (जिनके वीरता की कहानी हमने बचपन में पढ़ी थी और जो फ़्रांस-इंग्लैंड युद्ध की नायिका थी) को भी चर्च ने नहीं छोड़ा। उसे विधर्मी और ‘चुडै़ल’ घोषित कर देकर पूर्वी फ्रांस के बुरगुंडी शहर के राउन बाजार में जिंदा जला दिया। अत्याचार की भीषण कहानी यही ख़त्म नहीं हुई, 1944 में इंग्लैंड में हेलेन डंकल नाम की एक महिला को ‘डायन’ होने के आरोप में गिरफ्तार कर उन पर मुकदमा चलाया गया।

ऐसा नहीं है कि आज इनलोगों ने अपने किताब के महिला विरोधी खूनी पन्नों से हाथ धो लिया है। आज तक पोप की गद्दी अपने ऊपर किसी महिला पोप को बैठे देखने को लालायित है, बाइबल के पूर्व भाग में 73 नबियों का वर्णन है और उत्तर भाग में दो का पर इन नबियों में एक भी स्त्री नहीं है।
बाइबल के कुछ वचन इनके स्त्रीप्रेम(?) और उनके नारी-सम्मान(?) का जिन्दा प्रमाण है इसलिये कभी कोई शिगनापुर और सबरीमाला पर ज्ञान दें तो उससे इनकी किताब के इन वचनों के बारे में जरूर पूछियेगा :-
“पर यदि तू अपने पति को छोड़ दूसरे की ओर फिर के अशुद्ध हुई हो, और तेरे पति को छोड़ किसी दूसरे पुरूष ने तुझ से प्रसंग किया हो और याजक उसे शाप देने वाली शपथ खिलाकर कहे,कि प्रभु तेरी जांघ सड़ाये ओर तेरा पेट फुलाये। “
– (पुराना नियम, गिनती ५:२०)
“स्त्रियां कलीसिया की सभा (चर्च) में चुप रहें, क्योंकि उन्हें बातें करने की आज्ञा नहीं, परन्तु अधीन रहने की आज्ञा है: जैसा व्यवस्था में लिखा भी है।”
– नया नियम, 1 कुरंथिनो, १४:३४-३५)
“और आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकाने में आकर अपराधिनी हुई।”
– नया नियम, तीमुथियुस के नाम पहला पत्र, २:११-१३
“और मैं कहता हूं, कि स्त्री न उपदेश करे, और न पुरूष पर आज्ञा चलाए, परन्तु चुपचाप रहे।”
– नया नियम, तीमुथियुस के नाम पहला पत्र, २:११
“यहोवा यों कहता है, कि सुन, मैं तेरे घर में से विपत्ति उठा कर तुझ पर डालूंगा; और तेरी पत्नियों को तेरे साम्हने ले कर दूसरे को दूंगा, और वह दिन दुपहरी में तेरी पत्नियों से कुकर्म करेगा। “
– पुराना नियम, २ शमूएल १२:११-१२
“फिर स्त्री से उसने कहा, मैं तेरी पीड़ा और तेरे गर्भवती होने के दु:ख को बहुत बढ़ाऊंगा; तू पीड़ित हो कर बालक उत्पन्न करेगी; और तेरी लालसा तेरे पति की ओर होगी, और वह तुझ पर प्रभुता करेगा।”
– पुराना नियम, उत्पत्ति ग्रंथ, ३:१६
“सो अब बाल-बच्चों में से हर एक लड़के को, और जितनी स्त्रियों ने पुरूष का मुंह देखा हो उन सभों को घात करो।”
– पुराना नियम, गिनती ग्रंथ, 31
इस्लाम के भी एक लाख चौबीस हज़ार अंबिया(पैगम्बर) में एक भी स्त्री नहीं हैं। बाइबल के नये और पुराने नियम में किसी एक स्त्री प्रोफेट का उल्लेख नहीं है, नये नियम में स्त्रियों को चर्च में मुँह बंद कर रखने का आदेश है, पुराने नियम में मातृत्व को शाप बताया गया है। यहीं इसके बरअक्स हमारे यहाँ वेदों की मंत्र द्रष्टाओं में न जाने कितनी स्त्रियाँ हैं, दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी रूप में नारी शक्ति सर्व-पूज्य है। मैत्रीय, अनुसुइया, सीता, मदालसा आदि अनगिनत नारी हमारे यहाँ देवी रूप में पूजित हैं और मातृत्व को सबसे बड़ा वरदान कहा गया है। वास्तविकता में हिन्दू धर्म में देवताओं से ज्यादा देवियों की संख्या है जो गाँव गाँव में, कुल कुल में पूजित हैं|
रोचक बात ये भी है कि दुनिया भर में अनगिनत चर्च ऐसे हैं जिनमें महिलाओं का प्रवेश वर्जित रखा गया है जिसमें केरल का प्रसिद्ध मलंकारा चर्च भी है। लेकिन फिर भी ऑर्थोडॉक्स, स्त्रीविरोधी और पिछड़े हिन्दू हैं। वाह रे दोगलों! इस त्रिगुट को बस एक निर्दोष सबरीमाला दीखता है, क्योंकि हिन्दू एक आसान निशाना है।
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