जब सीताजी व लक्ष्मणजी सहित श्रीराम वन जाने की आज्ञा लेने दशरथ जी व महर्षि वशिष्ठ के पास आए तो क्रूर कैकेयी उन तीनों के लिए तुरन्त वल्कल वस्त्र ले आई। श्रीराम व लक्ष्मण जी ने तो चीर के वस्त्र पहन लिए पर जब सीताजी वह वस्त्र पहनने लगीं तो सारी स्त्रियाँ विलाप करने लगीं व श्रीराम से बोलीं कि वनवास की आज्ञा सीताजी को नहीं मिली इन्हें यहीं रानी की तरह रहने दो। पर श्रीराम ने सीताजी ने चीड़ के वस्त्र पहना ही दिए।
तब वल्कल वस्त्र धारण किए हुए श्रीसीताजी को देख राजा के गुरु वशिष्ठ जी का कलेजा फट गया और उनकी आंखों में आँसू आ गए। उन्होंने सीताजी को रोककर कैकेयी से कहा..
“मर्यादा का उल्लंघन करके अधर्म की ओर कदम बढ़ाने वाली दुर्बुद्धि कैकेयी! तू केकयराज के कुल की जीती जाती कलंक है। अरे! राजा को धोखा देकर भी तू सीमा के भीतर नहीं रहना चाहती है?
शील का परित्याग करने वाली दुष्टे! देवी सीता वन में नहीं जाएंगी। श्रीराम के लिए प्रस्तुत हुए अयोध्या के इस राजसिंहासन पर यह सीता जी ही बैठेंगी।
सम्पूर्ण गृहस्थों की पत्नियाँ उनका आधा अंग हैं। इस तरह देवी सीता श्रीराम की आत्मा हैं, अतः अब साम्राज्ञी बनकर उनकी जगह इस साम्राज्य का पालन सीताजी ही करेंगी।
यदि विदेहनन्दिनी श्रीसीताजी श्रीराम के साथ वन चली जाएगी तो हम सब इनके पीछे पीछे चले जाएंगे। यह सारा नगर भी चला जाएगा। सारे रक्षक भी चले जाएंगे। जहाँ अपनी पत्नी समेत श्रीरामचन्द्रजी निवास करेंगे, वहीं इस राज्य के लोग धन दौलत लेकर चले जाएंगे।”
— वाल्मीकि रामायण, अयोध्या काण्ड, सर्ग 37
गुरु वशिष्ठ जी को श्रीराम जी के जाने पर इतने विह्वल नहीं हुए पर जब सीताजी ने वल्कल पहने तो ऐसे स्थितप्रज्ञ ऋषि रोने लगे और उन्हें ही शासक बनाने की घोषणा करने लगे। ऐसे महान सनातन धर्म को जब वामपंथी स्त्री अधिकारों की बात सिखाते हैं तो हँसी आती है।
जय जनकनंदिनी श्री सीताजी की
जय श्री रामचन्द्र सरकार
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