वर्ण क्या हैं? हिन्दू धर्म के चार वर्णों में श्रेष्ठ कौन है?

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वर्ण क्या हैं? चार वर्णों में श्रेष्ठ कौन है?

शूद्र

वर्तमान समय मे शूद्र वर्ण खराब कपड़े पहनने वाले, गरीब लोग समझे जाते होंगे, तभी शूद्र वर्ण कहलाने में कई जातियों को समस्या होती है। आगे का मैं अपना मत दूँ, इससे पहले में एक बात स्पष्ट कर दूं, कल को मुझे कोई मेरा सही इतिहास बताकर यह कह दे कि तुम्हारी जाति “शूद्र वर्ण” में आती है, तो वह भी मुझे सहर्ष स्वीकार होगा। एक सेकेंड के लिए भी मैं अपने मन में हीन भावना नहीं लाऊंगा, क्योंकि मैं जानता हूँ, शूद्र उतना ही पवित्र है, जितना कि ब्राह्मण ! शूद्र नाम के वर्ण की यह दयनीय दशा इस्लामी आक्रमण के बाद हुई है। वैदिक समाज में तो दिन भर कमाई में विविध व्यवसाय करने वाले शूद्र बड़े धनवान हुआ करते थे। क्योंकि उनकी कमाई के ऊपर ऐसा प्रतिबंध नही था, जैसा अन्य तीन वर्णों पर था। वैदिक समाज के अनुसार सामाजिक सेवा के कार्य जो सबसे ज़्यादा करता, उसे उतनी ही ज़्यादा सहूलियत दी जाती थी। आप अपने घर पर ही देख लीजिए, माता पिता के लिए कमाऊ ज्येष्ठ पुत्र से भी ज़्यादा प्रिय उनकी सेवा करने वाला कनिष्ठ पुत्र होता है। वैदिक समाज में तो शूद्र समाज के लिए दंड प्रावधान भी अन्य वर्णों से कम था। इसका कारण यही था, की शासन को सबसे प्रिय यह शूद्र होते थे। उपर के तीनों वर्णों का तेल तो हर काल मे निकला है।

ब्राह्मण

ब्राह्मण वर्ण प्रतिदिन अन्य सभी जातियों से 2 या 3 घण्टे पहले प्रातः उठता था। उसके बाद वह नित्यकर्म, स्नान, सूर्यनमस्कार, अन्य योगासन, स्वाध्याय तथा पूजापाठ करता था। यह आदर्श आचरण, वैदिक संस्कृति में ब्राह्मणों से लेकर, शूद्र तक सबको विहित था। लेकिन ब्राह्मण वर्ण के लिए यह अनिवार्य था। ब्राह्मणों के पास शिक्षा, न्याय, ज्योतिष, वैद्य, समाज व्यवस्था आदि का कार्य था

वैश्य

वैश्य वर्ण के दिन की शुरुवात भी ब्राह्मणों की तरह ही थी। उसके बाद वे खेती व्यापार आदि के कार्यों में व्यस्त हो जाते थे। रात के 9 बजे तक वैदिक परंपरा के सारे लोग सो जाते थे। किसी भी व्यापार में ६ प्रतिशत से ज़्यादा मुनाफा नही कमा सकते थे। यह फिक्स था। उस सीमित आय से जो धन वैश्यों के पास एकत्रित होता, वही धन वे समाज को दान कर देते थे। आज भी वैश्यों के बनाये विशाल भवन भारत भूमि की सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं। स्वतंत्रता का एक उदाहरण देता हूँ आपको, राजस्थान में चुरू जिले में वैश्यों की शासन के साथ अनबन हो गयी। वैश्यों ने शासन को चुनोती देते हुए, पास में ही “रामगढ़ सेठान” नाम से नगर बसा लिया। और उसमें विशाल भवनों का निर्माण करवा उस नगरी को उस समय की सबसे सुंदर नगरी बना दिया। रामगढ़ और चूरू का राजा भी एक, राजा से रूठ के बनिये अलग हुए, वो भी उसी राजा के दूसरे नगर में, उसी राजा से सुंदर नगर बनाने की चुनौती देकर। और उसी राजा की जमीन पर। और राजा ने वो सब आराम से होने दिया। कोई द्वेष नही रखा। क्या आज का लोकतंत्र, और मुस्लिम शासन ऐसा करने देता ? और इसे ही आजादी कहते हैं।  

क्षत्रिय

जनता को क्षति से बचाने वाला, अपने नागरिकों की सुरक्षा की चिंता करने वाला क्षत्रिय वर्ण कहलाता था। उसके आचरण के स्तर उच्चकोटि के होते थे। जैसे पीठ पर शत्रु के वार करना, कायरता का द्योतक समझा जाता था। राजा के राज्याभिषेक होते ही वह किसी शत्रु पर चढ़ाई करता था। शत्रु ना होता, तो शिकार करता। उद्देश्य था, ऐसे संघर्ष में, प्रत्येक व्यक्ति की वीरता, साहस, स्वामीनिष्ठा, बुद्धिमानी आदि के गुण आजमाएं जा सकें। न्याय के लिए युद्ध करना, क्षत्रिय बड़े गर्व की बात समझते थे। मानो जैसे स्वर्ग का द्वार उनके स्वागत के लिए अपने आप ही उनके लिए खुल गया हो। जनता की रक्षा के लिए राष्ट्र सम्पति की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बाजी लगा देना, क्षत्रियों का धर्म होता था । Image result for padmini johar शूद्र वर्ण समाज का अभिन्न अंग था। गौ माता का सेवक था, राष्ट्र का सेवक था। वैश्य राष्ट्र का पालक था। ब्राह्मण राष्ट्र और धर्म का मस्तिष्क था। और क्षत्रिय राष्ट्र का रक्षक था। अब इनमें से किसे श्रेष्ठ कहें ? अपनी दो आंखों में से ज़्यादा प्रिय आंख कौनसी है ? निर्णय आपका…!!  राम पुरोहित, लेखक धर्म और समाज के लिए जीवन समर्पित करने वाले, व हिन्दू इतिहास और संस्कृति के गहन जानकार हैं। यह भी पढ़ें,

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